कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिक डाॅ. सुभाष यादव ने बताया कि शीत लहर एवं पाले से सर्दी के मौसम में सभी फसलों को नुकसान होता है। पाले के प्रभाव से पौधों की पत्तियों एवं फूल झुलस कर झड़ जाते हैं तथा अधपके फल सिकुड़ जाते हैं। फलियों एवं बालियों में दाने नहीं बनते हैं व बन रहे दाने सिकुड़ जाते हैं।
शीत लहर एवं पाले से फसल की सुरक्षा के उपाय डाँ. सुभाष यादव ने बताया कि पाले से बचाव के लिए पौधशालाओं के पौधों एवं सीमित क्षेत्र वाले उद्यानों व नकदी की सब्जी वाली फसलों में भूमि के ताप को कम न होने देने के लिए फसलों को टाट, पॉलीथिन अथवा भूसे से ढक दें। वायुरोधी टाटियां, हवा आने वाली दिशा की तरफ यानि उत्तर-पश्चिम की तरफ बांधे। नर्सरी, किचन गार्डन एवं कीमती फसल वाले खेतों में उत्तर-पश्चिम की तरफ टाटियां बांधकर क्यारियों के किनारों पर लगाए तथा दिन में : हटा लें। जब पाला पडऩे की सम्भावना हो तब फसलों में हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए। नमीयुक्त जमीन में काफी देरी तक गर्मी रहती है तथा भूमि का तापक्रम एकदम कम नहीं होता है। जिससे तापमान शून्य डिग्री सेल्सियस से नीचे नहीं गिरेगा और फसलों को पाले से होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है।
यह प्रक्रिया अपनाए जिन दिनों पाला पडऩे की सम्भावना हो उन दिनों फसलों पर घुलनशील गन्धक 0.2 प्रतिशत (2) ग्राम प्रति लीटर पानी) में घोल बनाकर छिडक़ाव करें। ध्यान रखें कि पौधों पर घोल की फुहार अच्छी तरह लगे। छिडक़ाव का असर दो सप्ताह तक रहता है। यदि इस अवधि के बाद भी शीत लहर व पाले की सम्भावना बनी रहे तो छिडक़ाव को 15-15 दिन के अन्तर से दोहराते रहे या थायो यूरिया 500 पीपीएम (आधा ग्राम) प्रति लीटर पानी का घोल बनाकर छिडक़ाव करें। सरसों, गेहूं, चना, आलू, मटर जैसी फसलों को पाले से बचाने में गन्धक का छिडक़ाव करने से न केवल पाले से बचाव होता है, बल्कि पौधों में लोह तत्व की जैविक एवं रासायनिक सक्रियता बड़ जाती है, जो पौधों में रोग रोधिताबढाने एवं फसल को जल्दी पकाने में सहायक होती है। दीर्घकालीन उपाय के रूप में फसलों को बचाने के लिए खेत की उत्तरी-पश्चिमी मेडों पर तथा बीच-बीच में उचित स्थानों पर वायु अवरोधक पेड जैसे शहतूत, शीशम, बबूल, खेजड़ी, अरडू आदि लगा दिए जाए तो पाले और ठण्डी हवा से फसल का बचाव हो सकता है।