
यह केंद्र आगामी छह माह में तैयार हो जाएगा, जिसमें रिसर्च लैब और आधुनिक कृषि संसाधन स्थापित किए जाएंगे। यह पहल भारत सरकार के कृषि मंत्रालय व भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की ओर से वर्ष 2023 को ‘विश्व मिलेट वर्ष’ घोषित करने के बाद मोटे अनाज को बढ़ावा देने के उद्देश्य से की गई है।
पश्चिमी राजस्थान में बाजरा उत्पादन सर्वाधिक
पश्चिमी राजस्थान में दुनिया का लगभग 25 प्रतिशत बाजरा उत्पादित होता है और बाड़मेर जिले में प्रतिवर्ष औसतन 5 लाख मीट्रिक टन से अधिक बाजरे का उत्पादन होता है। इसी पृष्ठभूमि में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने गुड़ामालानी में अनुसंधान केन्द्र स्वीकृत किया। 27 सितंबर 2023 को देश के उपराष्ट्रपति ने इसकी आधारशिला रखी गई थी।
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अगस्त 24 से चल रहा निर्माण कार्य
हालांकि, चुनावी प्रक्रियाओं के चलते टेंडर प्रक्रिया में कुछ विलंब हुआ, लेकिन अगस्त 2024 में निर्माण कार्य आरंभ कर दिया गया। अब दो मंजिला भवन का ढांचा तैयार हो चुका है और जल्द ही चुनाई व फिनिशिंग का कार्य भी शुरू किया जाएगा। केंद्र को आगामी छह माह में पूरी तरह तैयार करने का लक्ष्य रखा गया है।
यह अनुसंधान केंद्र 40 हेक्टेयर क्षेत्र में विकसित किया जा रहा है और इसकी चारदीवारी का कार्य पूर्ण हो चुका है। यह केंद्र हैदराबाद स्थित आईसीएआर-आईआईएमआर का सहयोगी संस्थान होगा, जो देश भर में विभिन्न प्रकार के बाजरा बीज उपलब्ध कराता है।
हैदराबाद से बीज लाकर करेगा परीक्षण
गुड़ामालानी अनुसंधान केंद्र हैदराबाद से विभिन्न किस्मों के बाजरा बीज लाकर उन्हें स्थानीय मिट्टी, पानी, हवा और जलवायु परिस्थितियों में परीक्षण करेगा। इन फसलों का निरीक्षण प्रगतिशील किसानों के माध्यम से करवाया जाएगा। जो फसल इस क्षेत्र की परिस्थितियों में सबसे अच्छी तरह से पनपेगी, उस पर कृषि वैज्ञानिक गहन अनुसंधान करेंगे।
अनुसंधान के उपरांत चयनित बीज को देशभर के कृषि विश्वविद्यालयों और निजी संस्थानों के सहयोग से बड़े स्तर पर तैयार करवाया जाएगा। इसके बाद आगामी मानसून से पहले यह स्थानीय परिस्थितियों के अनुकूल उन्नत बाजरा बीज किसानों को उपलब्ध कराया जाएगा।
केंद्र को भवन निर्माण का काम जोरों पर है। करीब छह महिने में बनकर तैयार होगा। शीघ्र ही केंद्र पर उन्नत किस्म का बाजरा बीज तैयार करने को लेकर अलग-अलग किस्म के बाजरा की बुवाई करेंगे। एक प्रक्रिया और अनुसंधान के बाद देश के कृषि विश्वविद्यालयों में इसका बीज तैयार करवाएंगे। जो स्थानीय हवा, मिट्टी, पानी, वातावरण के अनुसार होगा। इससे अच्छी पैदावार मिलेगी।
-डॉ. एसएन सक्सेना, प्रभारी बाजरा अनुसंधान केंद्र गुड़ामालानी