गिरल लिग्नाइट पॉवर प्लांट सरकार के लिए 2014 के बाद से सफेद हाथी साबित हो रहा है। 125-125 मेगावाट की दोनों इकाइयां बंद पड़ी है। अधिकारियों की लापरवाही की वजह से 6 प्रतिशत सल्फर वाला कोयला डालकर मशीनों का मटियामेट कर दिया और पूरा प्लांट ही चोक हो गया। कोयले को बदलने की बजाय मशीनों के कलपुर्जे बदलने में समय खराब कर दिया गया। उधर, अच्छा कोयला कपूरड़ी और जालिपा की खादानों का था। जिसमें केवल 1 प्रतिशत सल्फर थी, यह भादरेस के निजी पॉवर प्लांट को मिला। यह पॉवर प्लांट बेहतरीन तरीके से चल गया।
कम दाम या मुफ्त में देकर बिजली की कीमत में फायदा
सूत्रों के अनुसार एक विकल्प यह भी रखा जा रहा है कि इस पॉवर प्लांट को निजी कंपनी को ही कम दामों या नि:शुल्क दे दिया जाए। कोयला भी जालिपा-कपूरड़ी से दिया जाए। इसके बाद बिजली की कीमत सरकार तय करेगी। यह कीमत इतनी कम होगी कि सरकार को प्लांट संचालित होने पर आने वाले पांच-दस साल में फायदा हो।
तो फिर कुछ नहीं बचेगा
प्रदेश में विद्युत संकट के चलते अब गिरल की महत्ता भी बढ़ गई है। दूसरा गिरल के 2014 के बाद बंद रहने से प्लांट की हालत भी खस्ता हो गई है। इस प्लांट पर इस साल में निर्णय नहीं हुआ तो फिर मुत में भी कोई लेने को तैयार नहीं होगा।
अब पहले कोयले पर होगा फैसला
राज्य सरकार अब पहले कोयले पर फैसला करने की तैयारी में है। जालिपा और कपूरड़ी का कोयला जो भादरेस पॉवर प्लांट को दिया जा रहा है, उसमें अधिशेष की मात्रा बहुत ज्यादा है। इससे यह पॉवर प्लांट संचालित हो सकते है। यह कोयला गिरल पॉवर प्लांट को देने से पहली समस्या का समाधान होगा।
फिर पॉवर प्लांट पर निर्णय होगा
कोयले पर निर्णय होने के बाद इस सरकारी उपक्रम को सरकार चलाएगी या फिर निजी हाथों में देना है, इस पर अंतिम निर्णय की तैयारियां है। जानकारी के अनुसार 2000 करोड़ के करीब की लागत से बने इस पॉवर प्लांट से 1500 करोड़ रुपए का घाटा हो चुका है। अब इस पॉवर प्लांट की लागत कीमत 2000 करोड़ छोड़िए, 500 करोड़ तक भी कोई निवेशक लेने को तैयार नहीं है। वजह उनको इस पर बड़ी रकम लगानी पड़ेगी।