मनोज कुमार सिंह Nursery of hockey: एक दौर था जब भोपाल की गली-गली में हॉकी खेली जाती थी। हर बच्चे के हाथ में हॉकी स्टिक होती थी। 1931 से 1948 तक भोपाल वान्डर्स की टीम की गूंज देश-दुनिया में थी। इनाम उर रहमान, असलम शेर खान, सैय्यद जलालुद्दीन रिजवी जैसे ओलंपियन भोपाल से खेलते थे। एक समय तो ओलंपिक टीम में भोपाल के 5 खिलाड़ी थे। लेकिन, अब देश की हॉकी में भोपाल का नाम कहीं गुम हो गया है।
ओलंपियन का कहना है कि नई खेल नीति और क्लब संस्कृति का खात्मा इसकी बड़ी वजह है। हॉकी की राष्ट्रीय टीम में अभी प्रदेश से ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने वाले विवेक सागर, निलाकांत शर्मा और राष्ट्रीय जूनियर टीम में अंकित पाल खेल रहे हैं। सब जूनियर टीम में भोपाल के तीन खिलाड़ी हैं, जिनमें भोपाल के अंतिम ओलंपियन मोहम्मद समीर दाद के पुत्र कोनैन र्हैं। जबकि, पहले भोपाल और मप्र ने देश को 10 ओलंपियन सहित 30 अंतरराष्ट्रीय स्तर के दिग्गज हॉकी खिलाड़ी दिए हैं।
भविष्य को लेकर अनिश्चितता
पहले की तुलना में अब हॉकी में कॅरियर की अनिश्चितताएं अधिक हैं। पहले सरकार और सार्जनिक क्षेत्र की कंपनियां हॉकी खिलाडिय़ों को नौकरियां देती थीं। भोपाल के ओलंपियन-रहमान, असलम शेर खान, सैयद जलालुद्दीन रिज़वी और मोहम्मद समीर दाद इंडियन एयरलाइंस के खिलाड़ी थे। दाद एमपी पुरुष हॉकी अकादमी के कोच नियुक्त होने से पहले एयर इंडिया में वरिष्ठ सहायक महाप्रबंधक थे। लेकिन अब यह परंपरा बंद-सी हो गयी है। समीर दाद ने बताया कि इसीलिए युवा हॉकी खेलने में रुचि नहीं ले रहे हैं।
गरीब खिलाड़ी, महंगे खेल के सामान
हॉकी महंगा खेल बन गया है। जबकि, ज्यादातर प्रतिभाशाली खिलाड़ी गरीब परिवार से आते हैं। हॉकी किट्स और उपकरण बहुत महंगे हैं। हॉकी स्टिक और गेंदों की कीमतें बहुत ज्यादा है। कीमती टर्फ पर प्रैक्टिस सभी के बस की बात नहीं। इसीलिए साधारण मैदान में हॉकी टूर्नामेंट के आयोजन बंद है। भोपाल में आम खिलाड़ियों के लिए ऐशबाग हॉकी स्टेडियम भी सभी के लिए आम नहीं है।
कभी भोपाल में थे 50 बड़े खिलाड़ी
1960 के दशक में 40 से 50 भोपालवासी कोलकाता के तीन बड़े क्लब-ईस्ट बंगाल, मोहन बागान और मोहम्मडन स्पोर्टिंग सहित देश भारत भर के अन्य क्लबों के लिए हॉकी खेलते थे। पत्रिका से बातचीत में ओलंपियन सैयद जलालुद्दीन रिजवी ने बताया कि पहले अक्सर, राष्ट्रीय स्तर के टूर्नामेंटों की सभी टीमों में भोपाल के खिलाड़ी होते थे। इंडियन एयरलाइंस के पहले दस्ते में भोपालियों का बहुमत था। अब तो एक्का-दुक्का खिलाड़ी हैं।
2020 से लडखड़ा गयी हॉकी
2020 के बाद से भोपाल में हॉकी की स्टिक लडखड़ाने लगी। भारतीय ओलंपिक संघ का एक राज्य, एक इकाई का फॉर्मूला लागू करने से अन्य संगठनों सहित भोपाल हॉकी एसोसिएशन (बीएचए) की मान्यता खत्म हो गई। जबकि, यह 1925 से भारतीय हॉकी महासंघ (आईएचएफ) के संस्थापक सदस्य था। मप्र हॉकी का मुख्यालय जबलपुर स्थानांतरित हो गया। हॉकी अकॉदमी बनी तो खिलाड़ियों को निखारने वाली भोपाल की क्लब संस्कृति खत्म हो गई। इससे जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर उभरने की परंपरा पर भी विराम लग गया। क्लब स्तर पर हॉकी टूर्नामेंट के आयोजन बंद हो गए।
हॉकी की नर्सरी से जुड़े कुछ तथ्य
0-भोपाल को 2025 के अंत तक एक और सिंथेटिक टर्फ मिलेगा 0-ऐशबाग स्टेडियम और मेजर ध्यानचंद स्टेडियम में हॉकी मैदान 0-भारतीय खेल प्राधिकरण (एसएआई) परिसर में दो हॉकी मैदान
0-भोपाल मशहूर हॉकी खिलाड़ी इनाम उर रहमान, असलम शेर खान और सैय्यद जलालुद्दीन रिजवी 0-भोपाल ने देश को 10 से ज्यादा ओलंपियन और 17 नेशनल प्लेयर दिए
अन्य जगहों पर भी हालत ठीक नहीं
सैयद जलालुद्दीन रिज़वी ने बताया कि पंजाब, हरियाणा, मुंबई और ओडिशा सहित देश के अन्य हॉकी हब भी बर्बादी की ओर हैं। भोपाल की ही तरह बांबे हॉकी एसोसिएशन ने भी देश को 18 ओलंपियन हॉकी खिलाड़ी दिए हैं।
क्लब संस्कृति बहाल हो
मप्र में हॉकी की स्थिति मजबूत करनी है तो खेल नीति में परिवर्तन कर क्लब संस्कृति को बहाल करना होगा। ओलंपियन सैयद जलालुद्दीन रिजवी का कहना है कि पूरी दुनिया में क्लब के जरिए खेल को बढ़ावा देने की परंपरा कायम है। कोलकाता भी इसका बड़ा उदाहरण हैं। ऐसे में भोपाल हॉकी एसोसिएशन और विभिन्न हॉकी क्लबों की मान्यता रद्द करना हॉकी के लिए नुकसानदायक है। इसलिए क्लब संस्कृति की बहाली जरूरी है।
अशोक ध्यानचंद भी कहते हैं कि एक से अधिक टीमों की व्यवस्था के साथ ही क्लबों की मान्यता जरूरी है। क्योंकि अकॉदमी में खिलाडिय़ों का चयन श्रेष्ठता के आधार पर होता है, जबकि क्लबों में खिलाडिय़ों का चयन शून्य से होता है और फिर उन्हें निखारा जाता है। इस पद्धति से ही इससे राष्ट्रीय स्तर पर और अधिक मेधावी खिलाड़ी पहुंचेंगे।
भारत को रोकने की अंतरराष्ट्रीय साजिश
हॉकी के जादूगर ध्यानचंद्र के पुत्र और ओलंपियन अशोक ध्यानचंद का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत और एशिया के देशों को आगे बढऩे से रोकने के लिए एक साजिश के तहत हॉकी के नियम और तकनीक बदले गए। यूरोपीय देशों ने अंतरराष्ट्रीय हॉकी महासंघ में अपने बहुमत का उपयोग किया। जैसे ही हॉकी एस्ट्रोटर्फ पर एक पावर गेम बना और ऑफसाइड नियम की जगह नए नियम लागू हुए भोपाल के खिलाडिय़ों ने लडखड़ाना शुरू कर दिया।