यह भी कहा कि वन क्षेत्रों में आदिवासी पूजा ही तो कर रहे हैं, यह उनकी आस्था से जुड़ा विषय है। यदि वे वन क्षेत्रों में इसके लिए आते-जाते हैं, पूजा स्थलों को संरक्षित कर रहे हैं, थोड़ा निर्माण करना चाहते हैं तो गलत क्या है। ठीक करने वाली मध्यप्रदेश सरकार और केंद्र सरकार से मंत्री भूपेंद्र यादव यहां बैठे हैं। कार्यशाला प्रशासन अकादमी में आयोजित की गई है। असल में वन क्षेत्रों में वर्षों से हजारों आदिवासी पूजा करते रहे हैं। मंडला समेत कुछ जिलों में तो साज के पेड़ों को ही देवता मान पूजा जाता है। ऐसे वन क्षेत्रों में कई बार प्रवेश नहीं दिया जाता या पूजा स्थलों के संरक्षण की मनाही है। निर्माण तो कर ही नहीं सकते।
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सीएम(CM Mohan Yadav)
ने कहा कि विकास से जनजातीय वर्ग के हित प्रभावित न हों। वनों के प्रबंधन में औपनिवेशिक सोच से मुक्त होने की जरूरत है। विकास और प्रकृति को जोड़ते हुए प्रगति और प्रकृति में सामंजस्य स्थापित कर बढ़ेंगे। पेसा एक्ट इसी दिशा में अहम कदम है। किंग कोबरा सहित रैप्टाइल्स की प्रजातियों के संरक्षण के लिए भी व्यवस्था विकसित करने की जरूरत जताते हुए कहा कि इससे सर्पदंश की घटनाओं में कमी आएगी।
प्लास्टिक का उपयोग कम करना होगा
केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि प्रकृति जो भी पैदा करती है वह विश्व के लिए बोझ नहीं है, लेकिन इंसान का बनाया हुआ हर सामान प्रकृति के लिए गारबेज है। इस वजह से विश्व बड़ी समस्याओं से जूझ रहा है। भारत और मध्यप्रदेश भी अछूते नहीं। प्रकृति के संरक्षण के लिए समुदाय आधारित योजनाएं तैयार करने की जरूरत है। प्रत्येक व्यक्ति को ऊर्जा, अन्न और जल को सुरक्षित रखना होगा। सॉलिड वेस्ट और ई-वेस्ट मैनेजमेंट बड़ी चुनौती हैं। प्लास्टिक के उपयोग को कम करना और स्वस्थ जीवन शैली अपनाना होगा। केंद्रीय जनजातीय कार्य राज्य मंत्री दुर्गादास उइके: मिश्रित वनों के नुकसान के कारण जनजातीय समुदाय वन क्षेत्र से पलायन को विवश है। ऐसे में वन प्रबंधन और जनजातीय समुदाय के आजीविका के संसाधनों पर विचार-विमर्श की जरूरत है।
विचारक तथा चिंतक गिरीश कुबेर: वन और वनवासियों के परस्पर हित एक-दूसरे में निहित हैं। जनजातीय समाज की आजीविका का विषयवर्तमान परिदृश्य में बहुत संवेदनशील है। जनजातीय कार्य मंत्री विजय शाह: समुदाय आधारित वन पुनर्स्थापना, जलवायु अनुकूल आजीविका पर चर्चा आज की महती आवश्यकता है।