इसकी अनदेखी का खमियाजा भविष्य में भूगर्भीय घटनाओं के रूप में भुगतना पड़ सकता है। बीकानेर क्षेत्र की भूमि में 20 से 100 फीट गहराई में बजरी और व्हाइट क्ले जैसे खनिज है, यहां कई खानों में 30-40 साल से खनन चल रहा है। बीकानेर-जैसलमेर मार्ग पर कोलायत क्षेत्र में करीब 50 किलोमीटर एरिया पहले समतल बंजर भूमि वाला था।
अब माइनिंग वेस्ट के ढेर पहाड़ों के रूप में नजर आने लगे है। बीकानेर-जोधपुर हाईवे से लगते बरसिंहसर और पलाना के कोयला खनन क्षेत्र में काले मलबे के पहाड़ बन चुके हैं। प्रदेश के अन्य खनन क्षेत्रों पर नजर डाले तो भी भूतल के हालात तेजी से बदल रहे हैं।
पत्रिका एक्सपर्ट व्यू
राजकीय डूंगर कॉलेज बीकानेर के व्याख्याता विपिन सैनी का कहना है कि खनन से गहरी खाद बनने और मलबे के ढेरों से डेजर्ट इको सिस्टम में बदलाव आ सकता है। अभी प्रदेश का अधिकांश क्षेत्र सिटी लो डेसिटी भू-कंपन वाला है। खनन से भूमि पर किसी प्वाइंट पर दबाव बढ़ रहा है तो किसी प्वाइंट पर गहरी खदान बनने से यहां खाली जगह हो रही है। यह लो डेसिटी से हाई डेसिटी में शिफ्ट हो सकता है। भीलवाड़ा… जहाजपुर हमीरगढ़ क्षेत्र में खनन से करीब 20 मलबे पहाड़ बन गए है। इनका असर जल पर पड़ रहा है। व्याशि के समय खदानों में पानी भरता है जिसे पंप से बाहर निकालते हैं।
उदयपुर… उदयपुर में केसरियाजी ओड्यास O मटारमा दरोली और राजसमंद के भाषा पसंद मोखमपुरा करजय घाटी क्षेत्र में माइनिंग वेस्ट की डम्पिंग होती है। यहां के पुराने ढेर हैं। उदयपुर से 15 किमी दूर अहमदाबाद राष्ट्रीय राजमार्ग के पास बलीचा स्थित लाई गांव के पहाड़ों के बीच पानी भरने से कृत्रिम झील बनी है।
कोटा… कोटा स्टोन की खानों की खुदाई के मलबे के पहाड़ हैं। रामगंजमंडी पेट मोडक, साखेड़ी आदि में कोटा स्टोन के मलबे के पहाड़ बन गए हैं मलबे का उपयोग दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेस-वे के निर्माण में किया गया है। जमीन बंजर हो गई है। बंद खानों में पानी भरा रहता है।