Geeta Dutt Death Anniversary: गायकी सिर्फ सुर और ताल का मेल नहीं होती, बल्कि यह दिल की भावनाओं को जाहिर करने का तरीका होती है। जब कोई गायक अपने दिल से गाता है, तो वह सीधे सुनने वालों के दिल को छू जाता है।
गीता दत्त (Geeta Dutt) ऐसी ही एक खास गायिका थीं। उनकी आवाज में सिर्फ संगीत नहीं, बल्कि प्यार, दर्द और एहसास भी होता था। उनकी गायकी में एक अलग ही खनक और भावना होती थी, जो लोगों को अंदर तक महसूस होती थी। यहां तक कि मशहूर गायिका लता मंगेशकर भी गीता दत्त की दीवानी थीं। उन्होंने कई बार कहा कि गीता की आवाज में एक अलग ही जुड़ाव और मिठास है, जो उन्हें बहुत पसंद थी।
अपनी किताब ‘लता सुर गाथा’ में लता जी ने गीता दत्त (Geeta Dutt) का जिक्र किया और उन्हें एक नेकदिल इंसान बताया। उन्होंने उस दुखभरे पल को भी साझा किया, जब उन्हें गीता दत्त के निधन की खबर मिली थी।
गीता दत्त और लता मंगेशकर की पहली मुलाकात
किताब के जरिए लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) ने कहा, ”गीता दत्त को क्या हुआ कि मुझे मालूम ही नहीं चल सका कि उसकी मृत्यु हुई है। ताज्जुब की बात तो यह थी कि मुझे सलिल चौधरी जी का फोन आया और उन्होंने कहा, ‘लता, तुम तुरंत चली आओ, गीता के साथ ऐसे-ऐसे हुआ है। मुझे एकाएक धक्का लगा और मैं जब गई तो वे मुझे गीता के अंतिम दर्शन कराने लेकर गए। गीता से मेरी बहुत पटती थी और वह बहुत नेकदिल लड़की थी, इसलिए उसका अचानक यूं चले जाना कहीं भीतर निराश कर गया।”
गीता दत्त-लता मंगेशकर (इमेज सोर्स: आईएएनएस) फिल्म ‘शहनाई’ के गाने ‘जवानी की रेल चली जाय रे’ की रिकॉर्डिंग के दौरान गीता दत्त और लता मंगेशकर की पहली मुलाकात हुई थी। इस गाने में दोनों सुरों की रानियों ने अपनी मधुर आवाज दी थी।
अपनी किताब में लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) ने गीता दत्त से जुड़ी एक दिलचस्प बात बताई। उन्होंने लिखा कि गीता दत्त आम तौर पर पूरी तरह बंगाली अंदाज में हिंदी बोलती थीं जैसे बंगाल के लोग हिंदी बोलते हैं, ठीक वैसे ही। लेकिन जैसे ही वे माइक के सामने आतीं, तो जैसे कोई जादू हो जाता। उनका बोलने का तरीका एकदम बदल जाता; उच्चारण बिल्कुल साफ, लहजा पूरी तरह सटीक, और हिंदी इतनी सुंदर कि कोई अंदाजा भी नहीं लगा सकता कि अभी कुछ देर पहले तक वो बंगाली लहजे में बात कर रही थीं। उनके इस अनोखे अंदाज के चलते लता उनकी दीवानी थीं।
महज 41 साल की उम्र में उनका निधन
23 नवंबर 1930 को फरीदपुर (जो अब बांग्लादेश में है) में जन्मी गीता दत्त को बचपन से ही संगीत से खासा लगाव था। जब उनका परिवार कोलकाता से मुंबई आया, तब उनकी उम्र करीब 16 साल थी। यहीं से उनके संगीत सफर की शुरुआत हुई। उनकी मधुर आवाज ने जल्द ही सबका ध्यान खींचा और 1946 में उन्होंने पहली बार फिल्म ‘भक्त प्रह्लाद’ के लिए गाना गाया। उन्होंने अपने करियर में ‘जाने कहां मेरा जिगर गया जी’, ‘बाबू जी धीरे चलना’, ‘पिया ऐसो जिया में समाय गयो रे’, ‘वक्त ने किया क्या हसीं सितम’, ‘मुझे जान न कहो मेरी जान’, और ‘ये लो मैं हारी पिया’ जैसे अनगिनत हिट गाने दिए, जो आज भी लोगों के दिलों में बसते हैं। उन्होंने एस.डी. बर्मन, ओ.पी. नैय्यर, और हेमंत कुमार जैसे बड़े संगीतकारों के साथ काम किया।
गीता दत्त की जिंदगी में एक बड़ा बदलाव तब आया जब उन्होंने मशहूर निर्देशक और अभिनेता गुरु दत्त से शादी की। शादी के बाद उन्होंने कुछ समय के लिए फिल्मों से दूरी बना ली। लेकिन उनके निजी जीवन में परेशानियां बढ़ती गईं। गुरु दत्त का अचानक निधन और परिवार से जुड़ा तनाव उन्हें बहुत तकलीफ देने लगा।
इस दर्द ने गीता को अंदर से तोड़ दिया। उनका स्वास्थ्य भी धीरे-धीरे बिगड़ता गया। और फिर 20 जुलाई 1972 को, सिर्फ 41 साल की उम्र में उनका निधन हो गया। हालांकि आज गीता दत्त हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी जज़्बातों से भरी आवाज आज भी लोगों के दिलों में जिंदा है।