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छतरपुर

शहर में फोरलेन के पास जंगल-पहाड़ के लिए आरक्षित सरकारी जमीन पर बस रही कॉलोनियां

पलौठा पटवारी मौजा के खसरा नंबर 750 में 110 एकड़ और 751 में 75 एकड़ जमीन मध्यप्रदेश शासन के नाम पर वर्ष 1952-53 तक दर्ज है, उसके बाद बिना किसी सक्षम आदेश के पटवारी द्वारा सरकारी जमीन को जगत सिंह के नाम पर 75 एकड़ जमीन दर्ज कर दी गई।

छतरपुरApr 01, 2025 / 10:54 am

Dharmendra Singh

tahsil

एसडीएम ऑफिस

जिला मुख्यालय पर झांसी खजुराहो फोरलेन से लगी जंगल व पहाड़ की जमीन पर कॉलोनियां बसाी जा रही है। ये 185 एकड़ जमीन चरखारी रियासत के बंदोबस्त के समय वर्ष 1945-46 से दर्ज है। पलौठा पटवारी मौजा के खसरा नंबर 750 में 110 एकड़ और 751 में 75 एकड़ जमीन मध्यप्रदेश शासन के नाम पर वर्ष 1952-53 तक दर्ज है, उसके बाद बिना किसी सक्षम आदेश के पटवारी द्वारा सरकारी जमीन को जगत सिंह के नाम पर 75 एकड़ जमीन दर्ज कर दी गई। वहीं बिना सरकारी आदेश के 750 नंबर के 11 बटांक करके 52 एकड़ में शासन का नाम व बाकी जमीन निजी लोगों के नाम चढ़ा दिए गए। उन दोनों जमीन पर आज निजी लोगों का कब्जा है। वर्तमान में पूरे इलाके में प्लॉटिंग कर कॉलोनी बसा दी गई है।

विधानसभा में प्रश्न लगने के बाद भी हुई बंदरबाट


विधानसभा के वर्ष 2017 में जुलाई के सत्र में तात्कालीन विधायक चंदा गौर ने तारांकित प्रश्न क्रमांक 912 में छतरपुर के पलौठा मौजा के खसरा नंबर 751 और चंद्रपुरा मौजा के खसरा नंबर 24 को लेकर सवाल पूछे थे। उन्होंने सवाल किया कि क्या पहाड़ व जंगल के नाम से दर्ज सरकारी जमीनें बंदोबस्त के समय मध्यप्रदेश शासन के नाम दर्ज है। जिस पर तहसीलदार के जरिए तत्कालीन कलेक्टर छतरपुर ने जबाव दिया कि खसरा नंबर 751 में बंदोबस्त के समय वर्ष 1946 में जंगल दर्ज है। जिसका रकवा 75 एकड़ हैं, इस खसरा नंबर में वर्ष 1953-54 से 1958-59 तक जगत सिंह राव का नाम दर्ज है। किसके आदेश से सरकारी जमीन पर निजी व्यक्ति का नाम दर्ज किया गया, इसका विवरण अभिलेखागार में उपलब्ध नहीं है। तात्कालीन विधायक के सवाल का जबाव देते हुए खसरा नंबर 24 के लिए जबाव दिया गया कि बंदोबस्त वर्ष 1943-44 में परती क दीम की जमीन दर्ज थी। वर्ष 1954-55 में इस जमीन के चार बटांक किए गए, जिसमें 6.20 एकड़ कदीम, 1.35 एकड़ मंगना बल्द कलुआ चमार के नाम, 1.72 एकड़ नंदिकिशोर बल्द राजाराम ब्राह्मण और 3023 एकड़ धनुआ बल्द गनेशा अहिरवार के नाम दर्ज की गई। खसरा नंबर 21/1 रकवा 6.20 एकड़ वर्ष 1943-44 से 1991-92 तक शासकीय भूमि के रुप में दर्ज रहा, लेकिन वर्ष 1993-94 में इस जमीन के दो बटांक किए गए। जिसमें 0.509 हेक्टेयर जमीन रमेश तनय किशोरीलाल तिवारी के नाम व्यवस्थापित कर दी गई। वहीं दूसरे बटांक में 2.500हेक्टेयर में लल्लू तनय शिवरतन सिंह का नाम दर्ज कर दिया गया।

35 टुकड़े करके बांट दी जमीन


बिना किसी सक्षम अधिकारी के आदेश के धीरे-धीरे सरकारी रिकॉर्ड में इस नंबर के 35 बंटाक करके जमीन की बंदरबाट कर ली गई। विधानसभा में मामला उठा तो अधिकारियों ने वर्ष 1993-94 से खसरा नंबर में दर्ज प्रविष्टि को फर्जी मानते हुए सुधारने का आश्वासन दिया। फिर खसरा नंबर 24 का पूरा रकवा मध्यप्रदेश शासन के नाम चढ़ाया गया। इसी तरह से खसरा नंबर 751 के भी 35 बटांक कर सरकारी जमीन खुर्द-बुर्द कर दी गई। विधानसभा में मामला उठने के बाद भी इस जमीन को अभी तक सरकारी घोषित नहीं किया जा सका है।

जांच शुरु हुई, लेकिन कार्रवाई नहीं


चार महीने पहले तात्कालीन एसडीएम बलवीर रमन ने इस मामले की जांच के लिए टीम गठित की थी। दो तहसीलदार व आइआर पटवारी ने मौके का निरीक्षण भी किया है। रिकॉर्ड की जांच कराई जा गई। लेकिन जांच में क्या हुआ, इसका आज तक खुलासा नहीं हुआ। जांच के बाद कोई कार्रवाई भी नजर नहीं आई। एसडीएम बदल जाने के बाद जांच व कार्रवाई ठंडे बस्ते में चली गई।
इनका कहना है


अवैध कॉलोनियों पर कार्रवाई की जा रही है। बीते दिनों पठापुर रोड की कॉलोनियों में खरीद बिक्री पर रोक लगाई गई। जांच कर अन्य मामलों में भी कार्रवाई की जा रही है।
अखिल राठौर, एसडीएम

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