शिक्षा के लिए नदी पार, बच्चों का भविष्य अधर में
स्थानीय निवासी छुट्टन यादव, हरिनारायण अहिरवार, दिबिया आदिवासी और श्रीराम यादव बताते हैं कि गांवों में कोई माध्यमिक या उच्च प्राथमिक विद्यालय नहीं है। बच्चे शिक्षा के लिए कई किलोमीटर दूर हिनौता गांव तक जाते हैं, वह भी नदी पार करके, जो बरसात में खतरनाक हो जाता है। इससे बच्चों की पढ़ाई में निरंतरता नहीं रह पाती और छात्रवृत्ति, परीक्षा और सीखने की प्रक्रिया प्रभावित होती है।
बरसात में देश से अलग हो जाते हैं ये गांव
पक्की सडक़ का अभाव इन गांवों की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है। बारिश के मौसम में सगौरिया और दरदोनियों गांव पूरी तरह से बाहरी दुनिया से कट जाते हैं। न एम्बुलेंस आ सकती है, न अस्पताल तक पहुंचा जा सकता है। दुकानों तक जरूरी सामान ले जाना या मंडी में कृषि उपज पहुंचाना भी असंभव हो जाता है। सामाजिक जीवन तक ठप हो जाता है। विवाह जैसे आयोजन नहीं हो पाते क्योंकि लोग इन गांवों में बेटी देने से कतराते हैं।
स्वास्थ्य सेवाएं: ना दवा, ना डॉक्टर, ना इलाज
ग्राम पंचायत मझौरा में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तक नहीं है। गांवों के लोगों को इलाज के लिए कई किलोमीटर दूर जाना पड़ता है, जो न केवल खर्चीला है, बल्कि समय पर उपचार नहीं मिलने से बीमारियों की गंभीरता बढ़ जाती है। ओबीसी महासभा बकस्वाहा के ब्लॉक अध्यक्ष इन्द्रपाल सिंह यादव ने बताया कि पशुपालन पर निर्भर ग्रामीणों के लिए कोई पशु औषधालय नहीं है, जिससे मवेशियों की मौत हो जाती है और ग्रामीणों को आर्थिक नुकसान झेलना पड़ता है।
खेती-किसानी बेहाल, जलस्रोत नहीं, सिंचाई का साधन नहीं
इन गांवों में सिंचाई के लिए कोई तालाब, नहर या कुआं नहीं है। खेती वर्षा पर निर्भर है, लेकिन अनियमित बारिश और भूजल स्तर में गिरावट के कारण फसलें समय पर नहीं हो पातीं। ग्रामीण कर्ज में डूबते जा रहे हैं और बेरोजगारी के चलते युवा शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं।
अपराध और सामाजिक असमानता भी एक बड़ा संकट
सगौरिया गांव में लिंगानुपात बेहद असंतुलित है और महिलाओं की सुरक्षा पर कोई ठोस नीति लागू नहीं हो पाई है। स्थानीय निवासी श्रीराम यादव ने बताया कि अपराध के मामले पुलिस तक नहीं पहुंचते और गांव में एक डर और असुरक्षा का माहौल बना रहता है। यह स्थिति गांव में सामाजिक असंतुलन और मानसिक तनाव को जन्म दे रही है।
वन विभाग की स्वीकृति बनी रोड ब्लॉक
ग्रामीणों की सबसे बड़ी शिकायत यह है कि सडक़ निर्माण के लिए वन विभाग की मंजूरी नहीं मिल रही। कई बार प्रस्ताव बने और भेजे गए, लेकिन किसी को स्वीकृति नहीं मिली। इसके चलते सगौरिया और दरदोनियों गांव आज भी पहुंच विहीन गांव के रूप में चिन्हित हैं। ग्रामीण नेतृत्व और प्रशासन भी बेबसग्राम पंचायत के सरपंच नन्नेलाल यादव ने बताया कि उन्होंने अनेक बार प्रशासन और जनप्रतिनिधियों को पत्र लिखा और मौके पर जाकर समस्याओं से अवगत कराया। फिर भी न कोई स्थायी समाधान हुआ, न कोई ठोस कार्रवाई। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि जल्द ही कोई प्रयास नहीं हुआ, तो ये गांव विकास की दौड़ में हमेशा पिछड़ जाएंगे। तहसीलदार भरत पांडे ने जानकारी दी कि इन गांवों ने विधानसभा चुनाव में मतदान का बहिष्कार किया था। इसके बाद उन्होंने प्रस्ताव बनाकर वरिष्ठ अधिकारियों को भेजा, जिसमें बताया गया कि ये गांव पहुंच विहीन ग्राम हैं। एक नया प्रस्ताव कलेक्टर को भेजने की योजना भी बनाई जा रही है।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
प्रयासों के दावे, लेकिन समाधान नहीं पूर्व विधायक प्रदुम्यन सिंह ने बताया कि वे गांवों के लिए पुल और सडक़ निर्माण की मंजूरी की लड़ाई लड़ रहे हैं, लेकिन वन विभाग की अड़चनें बार-बार आ रही हैं। विधायक सुश्री रामसिया भारती ने भी कहा कि वे इन गांवों के विकास के लिए निरंतर प्रयासरत हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर समस्याओं की जटिलता और प्रक्रियागत बाधाएं अब भी बनी हुई हैं।