ऐसे हुए हुआ घोटाले का पर्दाफाश
तात्कालीन छतरपुर कलेक्टर संदीप जीआर के निर्देश पर चार सदस्यीय जांच समिति गठित की गई थी। इस टीम में तत्कालीन अपर कलेक्टर नम: शिवाय अरजरिया, कोषालय अधिकारी विनोद श्रीवास्तव, तत्कालीन लवकुशनगर एसडीएम निशा बांगरे और डिप्टी कलेक्टर राहुल सिलाडयि़ा शामिल थे। समिति ने नगर परिषद बारीगढ़ में व्यापक वित्तीय अनियमितताओं की जांच करते हुए रिकॉर्ड जब्त किए और गहराई से परीक्षण किया। जांच में यह सामने आया कि लाखों रुपए की सामग्री की खरीदी बिना निविदा, बिना वर्क ऑर्डर और बिना गुणवत्ता परीक्षण के की गई थी। कई मामलों में ऐसे फर्मों से खरीद की गई जो पंजीकृत ही नहीं थीं।
फर्जी भुगतान के प्रमुख मामले
- पारस इलेक्ट्रिकल छतरपुर को बिना वर्क ऑर्डर 20 लाख रुपए से अधिक का भुगतान किया गया।
- दुर्गा इलेक्ट्रॉनिक, राज केमिकल्स और भवन ठेकेदार राजेंद्र कुमार चौरसिया को बिना गुणवत्ता परीक्षण 85 लाख 89 हजार 240 रुपए का भुगतान किया गया।
- शिव और वारिश फर्नीचर जैसी अनरजिस्टर्ड फर्मों से 4 लाख 98 हजार रुपए की सामग्री खरीदी गई और बिना जीएसटी देयक भुगतान कर सरकारी नुकसान किया गया।
पार्क निर्माण में भी वित्तीय घोटाला
नगर परिषद में फूला पार्क के निर्माण के लिए 50 लाख रुपए की राशि स्वीकृत की गई थी, लेकिन भौतिक सत्यापन में पार्क बदहाल हालत में मिला। करीब 9 लाख रुपए की सामग्री खरीद ली गई, लेकिन वह अब तक पार्क में स्थापित नहीं हो सकी। शेष 40 लाख 33 हजार रुपए की राशि को दूसरी योजनाओं में उपयोग कर नियमों की अनदेखी की गई।
कार्रवाई फाइलों में दबी, जिम्मेदार अब भी बचे
जांच रिपोर्ट मिलने के बाद जिला प्रशासन ने नगरीय प्रशासन विभाग के प्रमुख सचिव, आयुक्त और कोष लेखा आयुक्त को दोषियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए पत्र भेजा था। लेकिन दो साल बाद बीतने के बाद भी न सीएमओ पर, न लेखापाल पर कोई सख्त कदम उठाया गया। इससे यह संदेह गहराता है कि नौकरशाही और राजनीति की मिलीभगत से घोटालेबाजों को बचाया जा रहा है। इस संबंध में आयुक्त नगरीय प्रशासन सीबी चक्रवर्ती से संपर्क करने पर उनसे संपर्क नहीं हो सका।
पत्रिका व्यू
5.5 करोड़ रुपए के इस बड़े घोटाले का पर्दाफाश तो हो गया, लेकिन कार्रवाई अब तक कागजों तक सीमित है। जब तक दोषियों पर कड़ी कार्यवाही नहीं होती और निकाय की पारदर्शिता नहीं बढ़ाई जाती, तब तक ऐसी वित्तीय लूट की घटनाएं बार-बार होती रहेंगी। जरूरत है जनप्रतिनिधियों, प्रशासन और विभागीय अधिकारियों की जवाबदेही तय करने की, ताकि जनता के पैसे की इस तरह से बर्बादी रोकी जा सके।