करोड़ों की लागत, लेकिन उपयोग शून्य
प्रत्येक स्कूल में लगाए गए एलईडी पैनल की कीमत 1.20 लाख रुपए है। इस प्रकार शिक्षा विभाग ने कुल 2.01 करोड़ रुपए खर्च कर जिले भर के 168 स्कूलों में एलईडी पैनल स्थापित कराए। हर पैनल में 65 इंच की स्क्रीन, आई-5 प्रोसेसर, 8 जीबी रैम और 256 जीबी हार्ड डिस्क लगी हुई है। लेकिन इन पैनलों का शैक्षणिक उपयोग लगभग शून्य है। अधिकांश पैनल या तो तकनीकी कारणों से बंद पड़े हैं या फिर इंटरनेट कनेक्शन के अभाव में इस्तेमाल नहीं किए जा रहे हैं।
पहाडग़ांव, ढड़ारी जैसे गांवों में भी यही स्थिति
छतरपुर के पहाडग़ांव स्थित शासकीय माध्यमिक विद्यालय में 408 छात्र अध्ययनरत हैं। वर्ष 2022-23 में यहां एलईडी बोर्ड लगाए गए थे, लेकिन आज तक इंटरनेट कनेक्शन नहीं होने के कारण पैनल बंद पड़े हैं। इसी तरह, सागर रोड स्थित ढड़ारी गांव में एक शाला, एक परिसर के अंतर्गत संचालित स्कूलों में कक्षा 1 से 10 तक के कुल 493 छात्र हैं। यहां भी वर्ष 2021-22 में एलईडी बोर्ड तो लगाए गए, लेकिन इंटरनेट कनेक्शन नहीं मिलने से वे केवल दीवार की शोभा बनकर रह गए हैं।
प्रशिक्षण का भी टोटा
जिन स्कूलों में एलईडी बोर्ड लगाए गए, वहां के अधिकांश शिक्षकों को इनका संचालन करने का प्रशिक्षण तक नहीं दिया गया। कई शिक्षक इसे चलाना नहीं जानते, और जो जानते हैं वे इंटरनेट कनेक्शन न होने की वजह से प्रयास नहीं करते। कुछ स्कूलों में मामूली तकनीकी खराबी के कारण पैनल बंद पड़े हैं, लेकिन मरम्मत कराने की दिशा में कोई पहल नहीं हो रही है।
स्मार्ट एजुकेशन का सपना अधूरा
एलईडी बोर्ड के माध्यम से शिक्षक पाठ को वीडियो और चित्रों के जरिए रोचक बना सकते थे। छात्र भी इंटरैक्टिव माध्यम से शिक्षा में ज्यादा सक्रिय हो सकते थे। ये बोर्ड क्विज, गतिविधियां और अन्य शैक्षणिक प्रयोगों के लिए बेहद उपयोगी हैं। लेकिन जब तक इन स्कूलों में इंटरनेट नहीं होगा और शिक्षकों को समुचित प्रशिक्षण नहीं मिलेगा, तब तक यह तकनीक बेकार ही साबित होती रहेगी।
शिक्षा विभाग की प्रतिक्रिया
जब इस मुद्दे पर जिला शिक्षा अधिकारी आरपी प्रजापति से बात की गई, तो उन्होंने कहा- जिन स्कूलों में एलईडी बोर्ड लगाए गए हैं, वहां इंटरनेट कनेक्शन के लिए तुरंत आदेश जारी करूंगा। साथ ही, जिन पैनलों में थोड़ी-बहुत खराबी है, उन्हें सुधारने के निर्देश भी दिए जाएंगे।
पत्रिका व्यू
छतरपुर जिले में स्मार्ट शिक्षा को बढ़ावा देने की दिशा में किए गए करोड़ों रुपए के निवेश का वर्तमान स्वरूप निराशाजनक है। जब तक जमीनी स्तर पर इंटरनेट सुविधा, तकनीकी देखभाल और प्रशिक्षण की व्यवस्था नहीं होगी, तब तक ये हाईटेक एलईडी बोर्ड केवल सरकारी स्कूलों की दीवारों की शोभा ही बने रहेंगे। जरूरत है कि शिक्षा विभाग इस ओर त्वरित और ठोस कदम उठाए ताकि छात्रों को डिजिटल शिक्षा का वास्तविक लाभ मिल सके।