जमेगी फाग की महफिल
रंग-गुलाल के साथ होली खेलने के साथ ही गांव की चौपालों में फाग की अनोखी महफिलें जमती हैं, जिनमें फगुआरों के होली गीत (फाग) जब फिजा में गूंजते हैं तो ऐसा लगता है कि श्रृंगार रस की बारिश हो रही है। फाग के बोल सुनकर बच्चे, जवान व बूढ़ों के साथ महिलाएं भी झूम उठती हैं। फाग सी मस्ती का नजारा कहीं और देखने को नहीं मिलता है। सुबह हो या शाम गांव की चौपालों में सजने वाली फाग की महफिलों में ढोलक की थाप और मंजीरे की झंकार के साथ उड़ते हुए अबीर-गुलाल के साथ मदमस्त किसानों बुंदेलखंडी होली गीत गाने का अंदाज-ए-बयां इतना अनोखा और जोशीला होता है कि श्रोता मस्ती में चूर होकर थिरकने, नाचने पर मजबूर हो जाते हैं।
टेसू के फूलों के रंग की होली
बुंदेलखंड इलाके में फागुन के महीनों में ऋतुराज बसंत के आते ही जब टेसू के पेड़ लाल सुर्ख फूलों से लद जाते हैं, इन्हीं फूलों को तोडकऱ लोग रंग बनाते हैं और होली खेलते हैं। लोग भले ही अब रासायनिक रंगों का उपयोग करने लगे हों, लेकिन बुंदेलखंड के कई गांवों में आज भी टेसू के फूलों के रंग से होली होती है। यहां के मंदिरों में अब भी भगवान को टेसू के फूलों के रंग चढ़ाए जाते हें। वहीं गांव-गांव की चौपालों में बुंदेलखंड के मशहूर लोक कवि ईसुरी के बोल फाग की शक्ल में फिजा में गूंजकर किसानों को मदमस्त कर देते हैं।
आधे बुंदेलखंड में दूसरे दिन होती है होली
जिले से सटे यूपी के झांसी, महोबा और हमीरपुर इलाके में होली जलने के दूसरे दिन पर्व नहीं मनाया जाता है बल्कि उस दिन कई जगह शोक मनाया जाता है। आशीष श्रीवास्तव बताते हैं कि पूरे देश में होली परमा के दिन पर खेली जाती है, लेकिन बुंदेलखंड में पहले दिन होली नहीं खेली जाती। परमा के दिन सभी जगह होली का हुड़दंग होता है, सभी होली के रंगों में डूबे होते हैं, वहीं बुंदेलखंड में परमा को शोक मनाया जाता है। गौरतलब है कि परमा के दिन रानी लक्ष्मीबाई के पति गंगाधर राव का होली के दिन निधन हो गया था। जिस कारण समूचे बुंदेलखंड में तब से लेकर आज भी परमा पर होली नहीं खेली जाती। कुछ जगह गांवों कस्बों में नई पीढ़ी के हुरियारे कीचड़ की होली या कपड़ा फाड़ होली अवश्य खेलते हैं। कई लोग पिकनिक पर जाते हैं। भाई दोज से लेकर रंग पंचमी तक लगातार होली खेली जाती है।