scriptजमीन की लूट और गौशालाओं की बदहाली ने सडक़ों पर ला दिया गौवंश, हर दिन हो रही हैं दुर्घटनाएं | The plunder of land and the poor condition of cow shelters have brought thousands of cattle on the roads, accidents are happening every day | Patrika News
छतरपुर

जमीन की लूट और गौशालाओं की बदहाली ने सडक़ों पर ला दिया गौवंश, हर दिन हो रही हैं दुर्घटनाएं

यहां न तो चरनोई की जमीनें बची हैं, न ही पर्याप्त गौशालाएं। आलम यह है कि गौ-वंश शहर और जिले की सडक़ों पर बेसहारा घूम रहे हैं और रोजाना 4-5 दुर्घटनाओं का कारण बन रहे हैं।

छतरपुरMay 27, 2025 / 10:42 am

Dharmendra Singh

street cattel

सडक़ पर गौवंश

छतरपुर. एक तरफ सरकार गौ-सेवा और गौ-संरक्षण को लेकर बड़े-बड़े दावे करती है, तो दूसरी तरफ छतरपुर जैसे जिले में हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है। यहां न तो चरनोई की जमीनें बची हैं, न ही पर्याप्त गौशालाएं। आलम यह है कि गौ-वंश शहर और जिले की सडक़ों पर बेसहारा घूम रहे हैं और रोजाना 4-5 दुर्घटनाओं का कारण बन रहे हैं। ट्रैफिक जाम से लेकर जान-माल की हानि तक इन घटनाओं के गवाह हैं।

चरनोई जमीन का इतिहास और बंदरबांट


शहर में गौवंशों के लिए आरक्षित चरनोई की जमीन का इतिहास काफी पुराना है। पन्ना रोड पर स्थित 270 एकड़ भूमि को कभी महाराजा भवानी सिंह जूदेव द्वारा गौ-शाला के लिए उपयोग में लाया जाता था। राजतंत्र खत्म होने के बाद इस भूमि को 1958-59 के बंदोबस्त रिकॉर्ड में मध्यप्रदेश शासन के नाम चरनोई भूमि के रूप में दर्ज किया गया। लेकिन समय के साथ यह जमीन सरकारी रिकॉर्ड से गायब होती चली गई। आरटीआई एक्टिविस्ट गोविंद शुक्ला के मुताबिक इस जमीन को 1971 के एक फर्जी आदेश के आधार पर महारानी के नाम दर्ज कर दिया गया, जबकि महारानी का निधन 1963 में ही हो चुका था। इसके बाद जमीन को महाराजा भवानी सिंह के नाम ट्रांसफर कर दिया गया और फिर 1984 व 1994 में क्रमश: 22 एकड़ और 8 एकड़ जमीन बेची गई। हैरानी की बात यह है कि खुद महाराजा ने 1989 में लिखित रूप में कहा था कि उन्होंने कभी कोई जमीन बेची नहीं और न ही किसी को बेचने का अधिकार दिया। इतना ही नहीं, कुछ जमीनें गणेश मंदिर को दान में दी गई थीं, जिसे बाद में गाड़ीखाना ट्रस्ट के नाम पर बेच दिया गया। यह ट्रस्ट महारानी की मृत्यु के बाद बनाया गया था और संबंधित खसरा नंबरों की कोई जमीन ट्रस्ट के नाम दर्ज भी नहीं थी। इसके बावजूद ट्रस्ट के माध्यम से जमीनों का जमकर व्यावसायिक उपयोग किया गया।

कांजी हाउस बंद होने से लावारिश हो गए गौ-वंश


छतरपुर शहर के पुरानी गल्लामंडी और खटकयाना मोहल्ला में कांजी हाउस का संचालन किया जाता था। जो गौ-वंश सडक़ पर आवारा घूमते पाए जाते,उन्हें कांजी हाउस भेज दिया जाता था। जहां उनके खाने और इलाज की व्यवस्था होती थी। नगर पालिका द्वारा संचालित कांजी हाउस गौ-वंश के मालिक से जुर्माना बसूलते थे। जिससे कांजी हाउस का खर्च निकलता था और शहर की सडक़ों पर गौ-वंश आवारा नहीं घूमते थे। न ट्रैफिक जाम,न सडक़ दुर्घटना होती थी। लेकिन नगरपालिका द्वारा कांजी हाउस बंद कर दिए जाने के बाद से शहर में गौ-वंश सडक़ों पर घूमने लगे।

पुरानी गौशालाएं बंद हो गई


जिले की गौशालाओं को हर साल 22 लाख रुपए का सरकारी अनुदान दिया जाता है, लेकिन इसका कोई सकारात्मक प्रभाव ज़मीन पर नहीं दिखता। न तो नई गौशालाएं खुल रही हैं, न ही पुरानी गौशालाओं की सुविधाएं बढ़ रही हैं। वर्ष 2016-17 में हुई जिला गौपालन समिति की जांच में पता चला कि कामधेनु भारती गोपाल गौशाला (बिजावर), श्री राधारानी गौशाला (भगवां) और श्रीकृष्ण गौशाला (हरपालपुर) बंद पाई गईं। इसके बाद 2018-19 में कामधेनु ग्वाड़ा गौशाला (लवकुशनगर), मां धंधागिरी गौशाला सेवा समिति (बारीगढ़) और रामकृष्ण गौशाला समिति (बकस्वाहा) भी बंद हो गईं।

2005 में बंद हो गए कांजी हाउस


लगभग वर्ष 2005 में ही कांजी हाउस का संचालन बंद हो गया था,बंद करने के कोई आदेश तो नहीं थे,लेकिन गौवंश नहीं आने या फिर आने पर उनके मालिक नहीं आते थे,इसलिए कांजी हाउस का संचालन बंद हो गया। हालांकि संविधान के 74वें संशोधन के तहत नगरपालिका क्षेत्र में गौ-वंश पर क्रूरता न करने के प्रावधान पर नगरपालिका द्वारा गौ-शाला का निर्माण किया गया।
डीडी तिवारी,पूर्व सीएमओ,नगर पालिका

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