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दमोह

भील आदिवासी के बच्चों के नाम जोसेफ और थॉमस

दमोह जिले मडिय़ादो धर्मांतरण की आंच शहरों से निकल वनांचल तक पहुंच चुकी है। ईसाई मिशनरियों द्वारा जंगलों में रहने वाले भील, आदिवासी को टारगेट कर धर्मांतरण करा रहे हैं। इसके लिए वह इनकी मजबूरियों और गरीबी का फायदा उठा रहे हैं और ऐसे लोगों को लालच देकर धर्मांतरण का खेल खेला जा रहा हैं। […]

दमोहMay 14, 2025 / 02:51 am

हामिद खान

भील आदिवासी के बच्चों के नाम जोसेफ और थॉमस

भील आदिवासी के बच्चों के नाम जोसेफ और थॉमस

दमोह जिले मडिय़ादो धर्मांतरण की आंच शहरों से निकल वनांचल तक पहुंच चुकी है। ईसाई मिशनरियों द्वारा जंगलों में रहने वाले भील, आदिवासी को टारगेट कर धर्मांतरण करा रहे हैं। इसके लिए वह इनकी मजबूरियों और गरीबी का फायदा उठा रहे हैं और ऐसे लोगों को लालच देकर धर्मांतरण का खेल खेला जा रहा हैं। ऐसे कितने लोग इन गांवों में धर्मांतरण कर चुके हैं, यह तो फिलहाल स्पष्ट नहीं हैं, लेकिन एक परिवार ने स्वयं ही धर्मांतरण की बात को स्वीकार किया है।

सरकारी रेकार्ड में दर्ज हुए तो हकीकत आई सामने

दमोतिपुरा ग्राम पंचायत के सूरजपुरा गांव में दो बच्चों के नाम जब सरकारी रेकॉर्ड में दर्ज हुए तो ये हकीकत सामने आना शुरू हुई। आदिवासी गांव में सरकारी दस्तावेजों में जब जोसेफ और थॉमस के नाम दर्ज कराए गए हैं। जो कि एक भील आदिवासी के पुत्र बताए जाते हैं। ये नाम सामने आने के बाद गांव में धर्मांतरण की चर्चा शुरू हो गई है। ग्रामीण बताते हैं कि धूलिया भील निवासी सूरजपुरा ग्राम पंचायत दमोतीपुरा को लगभग 10 वर्ष पहले ईसाई धर्म स्वीकार कराया गया था।

छतरपुर और दमोह दोनों जगह से चल रहा काम

स्थानीय लोगों के अनुसार भारतीपुरा जो दमोह जिले से सटकर छतरपुर जिले की सीमा पर जंगल में बसा है वहां से भील समाज के जरूरतमंद लोगों को धर्म परिवर्तन के लिए भ्रमित किया जा रहा है। धूलिया भील के अनुसार उसकी पत्नी की तबियत कई सालों से खराब थी। ईसाई धर्म में जाने से हालत में सुधार हुआ तो वहीं धर्म अपना लिया। धर्मांतरण का खेल दमोह छतरपुर के जंगलों में बसे गांव भारतीपुरा से चल रहा है। धूलिया भील के अनुसार उसने भारतीपुरा में 8 परिवार ईसाई धर्म अपनाए हैं। उन्हीं के हिसाब से उसका धर्म परिवर्तन हुआ है। यह सभी परिवार 20 से 30 साल पहले झाबुआ, धार, राजस्थान, गुना से आए थे, जिन्हें आदिवासी वर्ग से भूमि पट्टा सहित अन्य लाभ लिया है। सूरजपुरा, कुंअरपूरा,, मनकपुरा के जंगलों में बसे भील समुदाय पर मिशनरियों की नजर है।
मेरी पत्नी ज्यादा बीमार थी। इलाज के लिए सभी जगह गया, लेकिन आराम नहीं मिला था। ईसाई धर्म अपनाने के बाद पत्नी को उपचार दिया गया और उनकी तबीयत ठीक है। इसलिए यही धर्म मान लिया।
धूलिया आदिवासी, धर्म परिवर्तन करने वाला युवक

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