काल भैरव कथा (Kal Bhairav Katha)
धार्मिक कथा के अनुसार एक बार सभी देवता और ऋषि-मुनि बैठकर चर्चा कर रहे थे। उसी दौरान भगवान ब्रह्मा ने खुद को सभी देवताओं में श्रेष्ठ बताते हुए कहा कि इस सृष्टि की रचना करने में मेरा सबसे अहम योगदान है। जिसको लेकर उन्हें खुद पर गर्व महसूस होता है। लेकिन ब्रह्मा जी की यह अहंकार भरी बात अन्य देवता और ऋषि-मुनि को रास नहीं आई। इस बात से अन्य देव और संत जन परेशान हो गए। जब ब्रह्मा ने स्वयं को शिव से भी बड़ा बताया, तो भगवान शिव ने उनका अहंकार समाप्त करने का निश्चय किया। धार्मिक मान्यता है कि भगवान शिव ने अपने क्रोध से कालभैरव का अवतार लिया। यह अवतार अत्यंत भयंकर और बलशाली था। कालभैरव क्रोध में तुरंत ब्रह्मा के पास पहुंचे और उनके पांच मुखों में से एक को काट दिया। यह मुख ब्रह्मा के घमंड और अहंकार का प्रतीक था। इस घटना के बाद ब्रह्मा को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने भगवान शिव से क्षमा मांगी।
लेकिन ब्रह्मा का सिर काटने की वजह से कालभैरव को ब्रह्महत्या दोष लग गया। इस दोष से मुक्ति पाने के लिए कालभैरव को काशी पहुंचने का आदेश दिया गया। काशी पहुंचने पर उनका दोष समाप्त हो गया। इसके बाद भगवान शिव ने उन्हें काशी का कोतवाल नियुक्त कर दिया। तब से कालभैरव को काशी का रक्षक और न्याय के देवता माना जाता है।
कालभैरव की पूजा का महत्व (Kal Bhairav Puja Mahtva)
आज भी काशी के कालभैरव मंदिर में भक्त उनकी पूजा करते हैं। मान्यता है कि जो भक्त काशी आते हैं उनको कालभैरव भगवान के दर्शन जरूर करने चाहिए। अन्यथा उसकी पूजा और यात्रा अधूरी मानी जाती है।