इस सावन के व्रत में महिलाएं सुखी वैवाहिक जीवन के लिए प्रार्थना करती हैं और विशेष रूप से हरी साड़ी में सजधज कर अपने मायके जाती हैं और तीज के गीत गाते हुए झूलों का आनंद लेती हैं। नव विवाहिताएं तो खासतौर पर पहला हरियाली तीज मायके में ही मनाती हैं। इसके लिए नई दुल्हनों को माता पिता ससुराल से पीहर में बुला लेते हैं। आइये जानते हैं तीज 2025 व्रत से संबंधित कुछ परंपरा
क्या है सिंधारा ??
हरियाली तीज पर एक दिन पहले माता पिता की ओर से विवाहित कन्या और उसके ससुराल के लोगों को उपहार भेजा जाता है। इसमें मिठाई, घेवर, मेहंदी, चूड़ियां, वस्त्र, आभूषण, अन्य श्रृंगार का सामान आदि होती हैं। इसी उपहार को सिंधारा कहा जाता है। हरियाली तीज के दिन सिंधारा भेंट करने की प्रथा के कारण इस तीज को सिंधारा तीज भी कहा जाता है।
हरियाली तीज की अन्य परंपरा
1.हरियाली तीज पर मेहंदी का विशेष महत्व है। इस दिन महिलाएं और युवतियां हाथों में मेहंदी और पैरों में आलता लगाती हैं। 2. हरियाली तीज पर सुहागिन स्त्रियां सास के पांव छूकर उन्हें सुहागी देती हैं। यदि सास न हो तो जेठानी या किसी अन्य वृद्ध महिला को सुहागी दी जाती है। 3. हरियाली तीज पर महिलाएं और युवतियां खेत या बाग में झूले झूलती हैं और लोक गीत पर नाचती-गाती हैं।
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हरियाली तीज पर तीन बातों को त्यागने का संकल्प
हरियाली तीज पर कई जगह महिलाएं इन 3 बातों के त्याग का संकल्प लेती हैं। 1. पति से छल-कपट न करने का संकल्प। 2. झूठ और दुर्व्यवहार से तौबा करने का संकल्प।
हरियाली तीज की मान्यताएं
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तप किया था। इस कड़ी तपस्या और 108वें जन्म के बाद माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त किया। मान्यता है कि श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया को ही भगवान शिव ने माता पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार किया। साथ ही भगवान शिव और माता पार्वती ने इस दिन को सुहागन स्त्रियों के लिए सौभाग्य का दिन होने का वरदान दिया। इसलिए मान्यता है कि हरियाली तीज पर भगवान शिव और माता पार्वती का पूजन और व्रत करने से विवाहित स्त्री सौभाग्यवती रहती हैं और घर-परिवार में सुख-समृद्धि आती है।