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Holi Ki Kahaniya: राक्षसी ढुंढी और शिव पार्वती से जड़ी होली की दिलचस्प कहानियां

Holi Ki Kahaniya: होली से जुड़ी कई कहानियां भारतीय लोक जीवन में प्रचलित है। इन्हीं में से राक्षसी ढुंढी और शिव पार्वती की भी है। आइये पढ़ते हैं ये विशेष कहानियां (Holy Folk Story)

भारतMar 13, 2025 / 12:48 pm

Pravin Pandey

Holi Ki Kahaniya

Holi Ki Kahaniya: होली की कहानियां

Holy Folk Story: होली क्यों मनाई जाती है, इसका मकसद क्या है, इन सब की जानकारी होली की लोक कहानियों में मिलती है। अब होली आ गई है तो आइये जानते हैं ऐसी ही दिलचस्प कथाएं (Dhundhi aur Shiv Parvati Ki Kathaen)

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राक्षसी ढुंढी की होली की कहानी (Demon Dhundhi Story)

प्राचीन कथा के अनुसार राजा पृथु के राज्यकाल में ढुंढी नामकी चालाक राक्षसी थी। कहानी के अनुसार वह बहुत निर्मम थी और बच्चों तक को खा जाती थी।
उसने देवताओं की तपस्या कर वरदान पा लिया था कि देव, मानव, अस्त्र-शस्त्र से उसकी मौत न हो और न ही उस पर गर्मी, सर्दी, वर्षा का असर हो। वरदान पाने के बाद उसका अत्याचार और भी बढ़ गया। लेकिन कोई भी उसका वध करने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था, लेकिन सभी उससे तंग आ चुके थे।

लेकिन ढुंढी को भगवान शिव का शाप भी मिला था कि बच्चे अपनी शरारतों से उसे खदेड़ सकते हैं और उचित समय पर उसका वध भी कर सकते हैं। इधर, ढुंढी से तंग राजा पृथु ने राज पुरोहितों से उपाय पूछा तो उन्होंने फाल्गुन पूर्णिमा के दिन का चयन किया क्योंकि यह समय न गर्मी का होता है न सर्दी का और न ही बारिश का। उन्होंने कहा कि बच्चों को एकत्रित होने को कहें और आते समय अपने साथ एक-एक लकड़ी भी लेकर आए। फिर घास-फूस और लकड़ियों को इकट्ठा कर ऊंचे-ऊंचे स्वर में मंत्रोच्चारण करते हुए अग्नि जलाएं और प्रदक्षिणा करें।

इस तरह जोर-जोर हंसने, गाने और चिल्लाने से पैदा होने वाले शोर से राक्षसी की मौत हो सकती है। पुरोहित के कहे अनुसार फाल्गुन पूर्णिमा के दिन वैसा ही किया गया। इस प्रकार बच्चों ने मिल-जुल कर धमाचौकड़ी मचाते हुए ढुंढी के अत्याचार से मुक्ति दिलाई। इसके बाद यह परंपरा बन गई, हुरियारों की टोली, रंग-गुलाल, ऊंची आवाज में मस्ती की जाती है।
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होली की शिव पार्वती की कहानी (Holi Ki Shiv Parvati Ki Kahani)

एक अन्य कथा के अनुसार हिमालय पुत्री पार्वती चाहती थीं कि उनका विवाह भगवान शिव से हो जाए पर शिवजी अपनी तपस्या में लीन थे। कामदेव पार्वती की सहायता को आए, उन्होंने प्रेम बाण चलाया और भगवान शिव की तपस्या भंग हो गई।

इस पर शिवजी को बड़ा क्रोध आया और उन्होंने अपनी तीसरी आंख खोल दी, उनके क्रोध की ज्वाला में कामदेव का शरीर भस्म हो गए। फिर शिवजी ने पार्वती को देखा। पार्वती की आराधना सफल हुई और शिवजी ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया। होली की आग में वासनात्मक आकर्षण को प्रतीकत्मक रूप से जला कर सच्चे प्रेम की विजय का उत्सव मनाया जाता है।
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होलिका और प्रह्लाद की कहानी (Holika Prahlad Ki Kahani)

ज्योतिषाचार्य नीतिका शर्मा ने बताया कि हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रह्लाद भगवान के अनन्य भक्त थे, उनकी इस भक्ति से पिता हिरण्यकश्यप नाखुश थे। इसी बात को लेकर उन्होंने अपने पुत्र को भगवान की भक्ति से हटाने के लिए कई प्रयास किए, लेकिन भक्त प्रह्लाद प्रभु की भक्ति को नहीं छोड़ पाए।

डॉ. अनीष व्यास ने बताया कि अंत में हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को मारने की योजना बनाई। अपनी बहन होलिका की गोद में प्रह्लाद को बैठाकर अग्नि के हवाले कर दिया। लेकिन भगवान की ऐसी कृपा हुई कि होलिका जलकर भस्म हो गई और भक्त प्रह्लाद आग से सुरक्षित बाहर निकल आए, तभी से होली पर्व को मनाने की प्रथा शुरू हुई।

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