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Ayurveda and Modern Science : वेदों से विज्ञान तक, भारतीय चिकित्सा ने बदली दुनिया की सेहत, पढ़िए विशेष कवरेज

भारत की प्राचीन चिकित्सा प्रणाली हजारों वर्षों में विकसित हुई, जिसका उल्लेख वेदों, उपनिषदों और संहिताओं में मिलता है। आयुर्वेद, योग और प्राकृतिक चिकित्सा के सिद्धांत आज भी वैज्ञानिक रूप से प्रभावी साबित हो रहे हैं।

जयपुरApr 01, 2025 / 04:01 pm

Manoj Kumar

Vedas to Science How Indian Medicine Transformed Global Health

Vedas to Science How Indian Medicine Transformed Global Health

Ayurveda and Modern Science : प्राचीन भारत की चिकित्सा पद्धतियां और परंपराएं हजारों वर्षों के दौरान विकसित होती रहीं। इसके स्रोत व उल्लेख वेदों, उपनिषदों, संहिताओं और ऐतिहासिक ग्रंथों में हैं। इनका वर्णन आधुनिक मेडिकल साइंस के सिद्धांतों और इलाज विधियों से मेल खाता है। आधुनिक विज्ञान कई सिद्धांतों को अब सही मानने लगा है, जिन्हें हमारे मनीषियों ने हजारों वर्ष पहले समझ लिया था। आयुर्वेद, योग, प्राकृतिक चिकित्सा आदि पर दुनियाभर में शोध हो रहे हैं।
कर्पूर चंद्र कुलिश जन्म शताब्दी वर्ष पर विशेष कवरेज

प्राचीन भारतीय चिकित्सा विज्ञान और ग्रंथ आज भी दुनिया में अपना असर दिखा रहे हैं। आयुर्वेद और सुश्रुत ने चेहरे से लेकर आंख तक के ऑपरेशन की तकनीकें बताईं, योग ने ‘वेल बीइंग’ के लिए सैकड़ों आसान दिए, विभिन्न चिकित्सा ग्रंथों में ऐसी उपचार विधियों और ज्ञान का उल्लेख किया गया जो आधुनिक चिकित्सा विज्ञान को प्रेरणा दे रही हैं।
इसी विरासत पर एक नजर डालते हुए राजस्थान पत्रिका ने तैयार किया यह विशेष पृष्ठ। यह कोशिश है, पाठकों के साथ भारत के वैभवशाली अतीत की उपलब्धियों को फिर से याद करते हुए उन पर बात करने की। हजारों वर्ष प्राचीन हमारी संस्कृति ने कैसे दुनिया को सेहतमंद बनाने में योगदान किया, इस पर भी चर्चा करने की। पढि़ए इन उपलब्धियों और उन्हें हासिल करने वाले विद्वानों से जुड़ी बातें।

पर्सनलाइज्ड इलाज की शुरुआत

अश्वनी कुमार आयुर्वेद के आचार्य, देवताओं के चिकित्सक (कुशल वैद्य)।
प्राचीन ग्रंथों में पहले सर्जन और औषधि विशेषज्ञ माने गए।
शरीर में कटे अंगों को शल्य क्रिया से जोडऩे में विशेषज्ञता रखते थे।
च्यवन ऋषि को युवा किया (ऋग्वेद)।
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वैदिक चिकित्सा रोगों की पहचान और इलाज की पद्धति का उल्लेख

चिकित्सा विज्ञान का सबसे पुराना उल्लेख ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद में मिलता है।
ऋग्वेदः हवन और औषधियों का वर्णन, आयु संबंधी मंत्रों की जानकारी ।
यजुर्वेदः शरीर और ऊर्जा संतुलन का ज्ञान ।
अथर्ववेदः मंत्र चिकित्सा, जड़ी- बूटियों से रोगों का उपचार।
वेदों में सूर्य चिकित्सा पद्धति का भी वर्णन । सूर्य की किरणों से पीलिया की चिकित्सा के बारे में बताया।
वैदिक काल में मौखिक रूप से चिकित्सा ज्ञान गुरु-शिष्य परंपरा से प्रसारित होता था ।
आजः ऋग्वेद में प्राकृतिक वस्तुओं से स्वास्थ्य लाभ के बारे में बताया गया। कहा गया, केवल मंत्र नहीं, प्रकृति के साथ रहकर शारीरिक- मानसिक गतिविधियां करने से ही शरीर को लाभ होगा। आज दुनियाभर के वैज्ञानिक माइंडफुल मेडिटेशन और लिविंग विद नेचर का समर्थन कर रहे हैं। नीम के एंटी-बैक्टीरियल गुण अथर्ववेद में 4,000 साल पहले बताए गए थे। रॉबर्ट लार्सन ने 1985 में नीम के बीज के अर्क का पेटेंट ले लिया।

माइंडफुल मेडिटेशन से विटामिन डी तक

आयुर्वेद का मूल स्रोत है अथर्ववेद (4000-3500 साल प्राचीन)। इसमें …

यज्ञ चिकित्सा, वनस्पति चिकित्सा, जल चिकित्सा, सूर्य किरण चिकित्सा, मानसिक चिकित्सा का विवरण।
रोगों की रोकथाम, प्राकृतिक चिकित्सा, जड़ी-बूटियों के प्रयोग और शरीर-मन के संतुलन से मानसिक स्वास्थ्य और आध्यात्मिक चिकित्सा के सिद्धांत बताए गए।
शरीर के अंग-प्रत्यंगों को गिनकर संक्षिप्त रूप से शरीर रचना विज्ञान, रक्त प्रवाह, विभिन्न तरह के ज्वर (बुखार), पाचन और पानी से जुड़े रोग एवं उनकी चिकित्सा का वर्णेन किया गया।
आज : माइंडफुल मेडिटेशन, प्रकृति से सेहत प्राप्त करना और धूप से विटामिन डी लेना आधुनिक इम्यूनोलॉजी (रोग प्रतिरोधक शक्ति) का अहम हिस्सा हैं। हमारें ग्रंथों में शरीर, मन और आत्मा के संतुलन के लिए योग, प्राणायाम, ध्यान के महत्व का उल्लेख है। यह आधुनिक होलिस्टिक हेल्थकेयर प्रणाली से मेल खाता सिद्धांत |

आयुर्वेद शिक्षा मेडिकल कॉलेज तक

तक्षशिला विश्वविद्यालयः यहां चिकित्सा, योग, सर्जरी की पढ़ाई होती थी।

नालंदा विश्वविद्यालयः आयुर्वेद और बौद्ध चिकित्सा का प्रमुख केंद्र ।

आचार्य चाणक्यः ‘अर्थशास्त्र’ में जन स्वास्थ्य, महामारी नियंत्रण और आयुर्वेद आधारित चिकित्सा का वर्णन ।
आज : चिकित्सा शिक्षा व्यवस्था की जैसी शुरुआत हमने की, आज वह दुनियाभर में विकसित स्वरूप में है।

सेहत की कुंजी भारतीय चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद

लगभग 3500 से 4000 वर्ष पहले शुरुआत
आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वंतरि जिन्होंने आयुर्वेदिक चिकित्सकों की परंपरा शुरू की।
यह दुनियाभर में स्वीकृत सबसे पुरानी पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों (टीएसएम) में से एक है।
इसमें जड़ी-बूटियों से उपचार की प्रणाली विकसित की गई थी।
आयुर्वेद विज्ञान शरीर की तीन प्रकृति बताता है, वात, पित्त और कफ। यह गर्भ से ही निर्धारित होती है। इसी के आधार पर बीमार व्यक्ति के उपचार के उपाय बताए गए हैं।

आज : अथर्ववेद में रोगों के तीन प्रमुख कारण विष (यक्ष्म). यातुधान और वात, पित्त, कफ (शरीर की प्रकृति) बताए गए। इन्हें शरीर के भीतर की अग्नि से जोड़ा गया, जैसा आज पाचन तंत्र से जोड़ा जाता है। ऋतु परिवर्तन से अस्वस्थ होना बताया गया, इन्हें आज मौसमी बीमारियां कहा जाता है। इन रोगों का भी विवरण मिला- शीर्षमय (सिर के रोग), तक्मन (बुखार). कर्णशूल (कान दर्द), ऐलव (एलर्जी), यक्ष्मा (टीबी), हृदय रोग, हरिमा (पीलिया) आदि ।
Ayurveda and Modern Science
Ayurveda and Modern Science : …इसलिए सबसे पुरानी हमारी चिकित्सा प्रणाली

…इसलिए सबसे पुरानी हमारी चिकित्सा प्रणाली

आधुनिक चिकित्सा के जनक हिप्पोक्रेटस यूनानी चिकित्सक थे, उनका काल 2,400 साल पूर्व का माना जाता है। इन्होंने बीमारियों के लिए तार्किक कारण बताए और उन्हें मानव शरीर और द्रव्यों के असंतुलन से जोड़ा जो हमारे आयुर्वेद में भी वर्णित हैं।
आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में स्पेन के अबू अल कासिम अल- जहरावी को सर्जरी का जनक माना जाता है। इनका समय 1089 साल पहले का था।

एलोपैथ शब्द का इस्तेमाल सबसे पहले वर्ष 1810 में जर्मन चिकित्सक सैमुअल हेनिमैन ने किया। इन्होंने ही होम्योपैथी की शुरुआत की।

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