Flu Virus in Raw Milk : फ्लू वायरस का कच्चे दूध में जीवित रहना
इस अध्ययन ने कच्चे गाय के दूध में मानव इन्फ्लूएंजा वायरस (एच1एन1 पीआर8) के जिंदा रहने और पांच दिनों तक संक्रामक बने रहने की बात उजागर की है। विशेष रूप से, शोधकर्ताओं ने यह पाया कि सामान्य रेफ्रिजरेशन तापमान पर फ्लू वायरस दूध में लंबे समय तक सक्रिय रहता है, जिससे इसके संभावित जोखिमों को लेकर चिंताएँ बढ़ गई हैं।
पाश्चराइजेशन का महत्व
अध्ययन के सह-प्रमुख लेखक मेंगयांग झांग ने बताया कि कच्चे दूध (Raw Milk) में संक्रामक फ्लू वायरस का कई दिनों तक बने रहना नए संचरण मार्गों की संभावना को जन्म देता है। पाश्चराइजेशन प्रक्रिया से दूध में मौजूद वायरस पूरी तरह से नष्ट हो जाते हैं। शोध में यह भी पाया गया कि पाश्चराइजेशन के बाद दूध में वायरस की मात्रा 90 प्रतिशत तक घट जाती है, लेकिन कुछ हद तक वायरल आरएनए (जैविक जानकारी का अंश) अभी भी बचा रहता है। यह भी पढ़ें :
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कच्चे दूध (Raw Milk) के समर्थकों का दावा है कि यह दूध पाश्चराइज्ड दूध से अधिक पोषक तत्व, एंजाइम और प्रोबायोटिक्स प्रदान करता है, जो इम्यून सिस्टम और पाचन तंत्र के लिए फायदेमंद होते हैं। हालांकि, यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) के अनुसार, कच्चे दूध (Raw Milk) में पाए जाने वाले ई. कोली और साल्मोनेला जैसे कीटाणु बच्चों, बुजुर्गों, गर्भवती महिलाओं और कमजोर इम्यूनिटी वाले व्यक्तियों के लिए गंभीर स्वास्थ्य जोखिम पैदा कर सकते हैं।
बर्ड फ्लू और डेयरी सुविधाओं पर प्रभाव
विशेषज्ञों का कहना है कि इस अध्ययन के परिणाम बर्ड फ्लू की बढ़ती चिंताओं के बीच बेहद महत्वपूर्ण हैं। कच्चे दूध में वायरस के जिंदा रहने से डेयरी सुविधाओं और उनके पर्यावरणीय तत्वों का दूषित होना संभव है, जो जानवरों और मनुष्यों दोनों के लिए जोखिम पैदा कर सकता है। यह भी पढ़ें :
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समग्र रूप से, यह अध्ययन कच्चे दूध के सेवन के जोखिमों और पाश्चराइजेशन के महत्व को रेखांकित करता है, जो स्वास्थ्य के लिए एक जरूरी कदम साबित हो सकता है।