गुर्जर समाज उत्तर कर्नाटक के पदाधिकारियों ने बताया कि भगवान देवनारायण की एक गोरक्षक, असहाय लोगों के कष्टों का निवारण करने वाले लोक देवता एवं पराक्रमी योद्धा के रूप में आराधना की जाती है। राजस्थान एवं अन्य राज्यों में बड़ी संख्या में विभिन्न समाज के श्रद्धालुओं द्वारा भगवान देवनारायण की पूजा की जाती है। देवनारायण महागाथा में बगडावतों और राण भिणाय के शासक के बीच युद्ध का रोचक वर्णन है। देवनारायण का अन्तिम समय ब्यावर तहसील के मसूदा के पास देहमाली स्थान पर गुजरा। भाद्रपद शुक्ला सप्तमी को उनका वहीं देहावसान हुआ। कृष्ण की तरह देवनारायण भी गायों के रक्षक थे। देवनारायण के पास 98 हजार पशु धन था। जब देवनारायण की गायें राण भिणाय का राणा घेर कर ले जाता तो देवनारायण गायों की रक्षार्थ राणा से युद्ध करते और गायों को छुड़ाकर लाते थे। देवनारायण की सेना में 1444 ग्वाले थे। देवनारायण ने अपने अनुयायियों को गायों की रक्षा का संदेश दिया।
गुर्जर समाज के लोगों ने बताया कि राजस्थान में जगह-जगह अनुयायियों ने देवालय अलग-अलग स्थानों पर बनवाए हैं जिनको देवरा भी कहा जाता है। भगवान देवनारायण का प्रमुख मन्दिर भीलवाड़ा जिले में आसीन्द कस्बे के निकट खारी नदी के तट पर महाराजा सवाई भोज में है। देवनारायण की पूजा भोपाओं द्वारा की जाती है। ये भोपा विभिन्न स्थानों पर जाकर लपेटे हुए कपड़े पर देवनारायण की चित्रित कथा के माध्यम से देवनारायण की गाथा गाकर सुनाते हैं। देवनारायण की फड़ में 335 गीत हैं जिनका लगभग 1200 पृष्ठों में संग्रह किया गया है एवं लगभग 15 हजार पंक्तियां हैं। ये गीत परम्परागत भोपाओं को कण्ठस्थ रहते हैं। देवनारायण की फड़ राजस्थान की फड़ों में सर्वाधिक लोकप्रिय एवं सबसे बड़ी है। भगवान देवनारायण की स्मृति में 2 सितंबर 1992 और 3 सितंबर 2011 को पांच रुपए मूल्यवर्ग के स्मारक डाक टिकट जारी किए गए थे।