इस अवसर पर चातुर्मासिक प्रवचन देते हुए साध्वियों ने कहा कि जिस तरह से फूल कोमल एवं सुगंधित होता है, ठीक उसी तरह से हमारा धर्म भी फूलों की तरह कोमल होना चाहिए। हमें अहिंसा परमो धरम को चरितार्थ करते हुए किसी जीव की हिंसा नहीं करनी चाहिए। हमें धर्म से हमारी आत्मा को जोडऩा है। यदि हम धन के प्रति मोह भाव रखेंगे तो आत्मा को मोक्ष मिलने वाला नहीं है। धर्म-ध्यान कराने के लिए ही चातुर्मास कराते हैं। जिस तरह से धन कमाने की उम्र हैं, उसी समय धर्म भी कमाना चाहिए। चातुर्मास पूर्णता की ओर है।
उन्होंने कहा कि जो भगवान ने बताया हैं उसके विपरित आचरण ही मिथ्यात्व है। हमारे जीवन में सम्यक दर्शन का बहुत महत्व है। जिस तरह से फूल एक होता है और उसके साथ कांटे अनेक होते हैं। उसी तरह से कुछ मनुष्य फूल के जैसे हैं तो कुछ कांटों के सरीखे होते हैं। श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ चातुर्मास समिति के अध्यक्ष वी. घेवरचन्द बोहरा ने चातुर्मास के आगामी कार्यक्रमों की जानकारी दी।