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अहिल्या-‘मैं इंदौर को एक ऐसा नगर बनते देखना चाहती हूं, जहां तकनीक, संस्कृति, संवेदना साथ-साथ बढ़े’

विकास और महिला सशक्तीकरण की प्रतीक न्यायप्रिय शासिका देवी अहिल्या बाई होलकर की 300वीं जन्म जयंती पर आज छ्व में पढि़ए लोकमाता का एआइ से लिया गया इंटरव्यू…।

इंदौरMay 31, 2025 / 12:02 pm

Sanjana Kumar

Ahilyabai Jayanti 2025

Ahilyabai Jayanti 2025- (फोटो: एक्स)

Ahilyabai Jayanti 2025: यह इंटरव्यू वैसे तो काल्पनिक है, लेकिन एआइ (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) के जरिए लोकमाता अहिल्याबाई से हुई इस भेंट वार्ता में सवालों के जवाब ने उन्हें जीवंत कर दिया। उनके महान व्यक्तित्व और गरिमा की सजीव झलक नजर आई। मां अहिल्या की 300वीं जयंती के महापर्व पर आप भी तकनीकी युग में उनके एआइ अवतार से शिक्षा और प्रेरणा लें। पेश है लोकमाता से लंबे एआइ इंटरव्यू के मुख्य अंश…।
Q. मां, क्या आप हमसे बात करेंगीं?

** अहिल्या बाई (मुस्कुराते हुए): अगर बात इंदौर की हो, तो मैं आज भी मौन नहीं रह सकती। 300 वर्ष बाद भी इंदौर की आत्मा आपको मां संबोधित करती हैं।
Q. आज के इंदौर को देखकर कैसा अनुभव हो रहा है?

** जानकर संतोष होता है कि इंदौर ने समय के साथ बदलते हुए भी मूल संस्कारों को नहीं छोड़ा। मैंने न्याय, सेवा व समरसता के मूल पर जिस इंदौर की नींव रखी थी, वह नगर देश में स्वच्छता, व्यवस्था व संस्कृति में अग्रणी है।
Q. आपने एक महिला होते हुए उस काल में शासन किया, जब स्त्रियों को शिक्षा तक वर्जित थी।

** शासन मेरे लिए तपस्या थी। वह जनसेवा का मंच था। मैं प्रजा की माता बनकर शासन करती थी। जनसमस्याएं सुनना, त्वरित न्याय देना ही मेरा धर्म था। मैं बजट स्वयं बनाती थी। मेरे लिए सत्ता नहीं, कर्तव्य का अनुशासन सर्वोपरि था।
Q. आज इंदौर स्मार्ट सिटी बन रहा है। आप इसे किस दृष्टि से देखती हैं?

** विकास तो आवश्यक है… परंतु विकास वह हो, जो मनुष्य को जोड़े, तोड़े नहीं। मुझे प्रसन्नता है कि इंदौर तकनीक में आगे बढ़ रहा है, लेकिन मेरी कामना है कि इस विकास में संस्कारों का दीपक न बुझे। स्मार्ट सिटी तभी सुंदर होगी, जब उसमें हर मोहल्ला, हर वर्ग, हर स्त्री-पुरुष को समान अवसर और आदर मिले।
Q. आपने गंगा से काशी तक, हिमालय से रामेश्वर तक मंदिर, घाट, धर्मशालाएं बनवाईं। क्या यह धर्म का प्रचार था?

** धर्म का प्रचार नहीं, धर्म का संरक्षण था। मेरा मानना था कि धर्म वही है, जो सबको स्थान दे। मैं सभी पंथों के यात्रियों के लिए सुविधाएं देती थी, चाहे वह वैष्णव, शैव या जैन हों। काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण हो या गंगा घाटों की मरम्मत।
Q. आज इंदौर स्मार्ट सिटी से भी आगे बढ़कर मेट्रोपोलिटन रीजन बनने की ओर है। इस विकास को आप कैसे देखती हैं?

** विकास आवश्यक है, लेकिन संतुलित होना चाहिए। इमारतें ऊंची हों, पर विचार भी ऊंचे हों। सड़कें चौड़ी हों, लेकिन मन भी उदार हो। मैं इंदौर को एक ऐसा नगर बनते देखना चाहती हूं, जहां तकनीक, संस्कृति और संवेदना साथ-साथ बढ़े। मेट्रोपोलिटन रीजन की सार्थकता इसी में है कि उसमें मातृत्व का भाव न बिसरे।
Q. अगर आज आप फिर से शासक होतीं तो इंदौर के लिए, यहां की जनता के लिए आपकी पहली योजना क्या होती?

** मैं हर मोहल्ले में सेवा चौकी बनवाती, जहां कोई भी नागरिक आकर अपनी समस्या बेझिझक, बिना डर, बिना भेदभाव बता सके। मैं शिक्षा पर विशेष बल देती, विशेष रूप से नारी शिक्षा। …और मैं प्रत्येक नगरवासी के लिए कर्म-संहिता बनवाती, जिसमें उसका सामाजिक योगदान निश्चित होता।
Q. आप आज के प्रशासकों और जनप्रतिनिधियों के लिए कोई संदेश देना चाहेंगी?

** राजा वही, जिसे प्रजा की पीड़ा देख रात में नींद न आए। आज के शासकों को चाहिए कि वे योजनाएं केवल कागजों पर न बनाएं, उन्हें जमीन पर उतारें। हर बच्चा पढ़े, हर स्त्री सुरक्षित हो, सशक्त हो, हर वृद्ध को समान मिले… यही आधुनिक प्रशासन की कसौटी होनी चाहिए।
Q. आज की पीढ़ी तेजी से पाश्चात्य प्रभाव में है। उन्हें क्या संदेश देना चाहेंगीं?

** संस्कृति कभी बोझ नहीं, हमारी पहचान है। मैं आज की पीढ़ी से कहना चाहूंगी कि नई सोच लाओ पर जड़ें मत काटो। भारतीयता में विज्ञान भी है, विनम्रता भी। दुनिया तुहारा अनुसरण तभी करेगी, जब तुम खुद को न भूलो।
Q. आज जब इंदौर गौरव दिवस मना रहा है, या आप इस गौरव में स्वयं को देखती हैं?

** इंदौर का गौरव मैं नहीं, उसकी जनता है। वे सफाईकर्मी हैं, जो तड़के सड़कों को चमकाते हैं। वे शिक्षक हैं, जो गांवों में पढ़ाते हैं। वे माताएं हैं, जो संस्कार देती हैं… यही इंदौर का असली गौरव हैं। मैं केवल माध्यम हूं। मेरा गौरव तो यही है कि इंदौर मुझे आज भी मां कह कर पुकारता है।
पत्रिका… आप न्यायप्रिय शासिका हैं, सरकार को क्या संदेश देंगी?

अहिल्या…राजा वह, जिसे प्रजा की पीड़ा देख नींद न आए, शिक्षा-सुरक्षा, समान ही कसौटी

लोकमाता की प्रेरणा से… इंदौरवासियों से अपील आइए, हम सब मिलकर एक ‘सच्चे इंदौरवासी’ की तरह जीने का संकल्प लें- न्यायप्रिय, सेवा भावी और संस्कारशील। यही देवी अहिल्या को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

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