fake doctor Case : बहुचर्चित दमोह फर्जी चिकित्सक कांड का स्वास्थ्य विभाग के लिए केवल इतना ही सबक है कि अब उसे निजी अस्पताल संचालकों को 100 रुपए के स्टांप में लिखकर देना होगा कि उनके यहां कोई फर्जी चिकित्सक नहीं है। विभाग इस प्रक्रिया के जरिए अपने जांच अभियान की इतिश्री कर लेगा। बाकी की जांच और रिपोर्ट भी निजी अस्पताल संचालकों को ही देना है।
fake doctor Case : दमोह कांड का सबक? निजी अस्पतालों को ही दे दी जांच की जिम्मेदारी
दरअसल, मिशन अस्पताल दमोह में फर्जी चिकित्सक का बड़ा कारनामा सामने आया था। बिना योग्यता के उसने जिन मरीजों की सर्जरी की उनकी मौत हो गई। इस घटना के बाद निजी अस्पतालों की व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े हुए हैं। उसके तार जबलपुर से जुड़े होने की जानकारी सामने आ रही है। लेकिन स्वास्थ्य विभाग ने इसकी जांच अभी तक शुरू नहीं की है। दमोह के प्रशासन से भी जानकारी नहीं मांगी है। मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ संजय मिश्रा की ओर से जारी परिपत्र में चिकित्सा अधिकारियों की प्रमाणित योग्यता और पंजीकरण की अनिवार्यता की जांच की जिम्मेदारी निजी अस्पताल संचालकों को ही दे दी गई है। उन्हें लिखित में इतना ही बस बताना है कि उनके यहां कोई फर्जी चिकित्सक काम नहीं कर रहा है।
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fake doctor Case : 21 अप्रेल की डेडलाइन
स्वास्थ्य विभाग की ओर से जारी आदेश में कहा गया है कि सभी अस्पतालों को 21 अप्रेल तक अपने चिकित्सा अधिकारियों की योग्यता एवं पंजीकरण की जांच कर इसकी पुष्टि मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी के समक्ष करनी है। अस्पताल संचालकों को ही सुनिश्चित करना है कि कि अन्य प्रदेश से आए चिकित्सकों की सेवाएं तभी लें, जब वे मध्यप्रदेश मेडिकल काउंसिल में पंजीकृत हों।
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fake doctor Case : अस्पतालों के लाइसेंस सवालों के घेरे में
जबलपुर में तो निजी अस्पतालों के लाइसेंस ही सवालों के घेरे में है। पत्रिका ने मनमानी को उजागर किया था। न्यू लाइफ मल्टी स्पेशलिटी हॉस्पिटल अग्निकांड में यह सामने आया भी था जब बिना मानकों को पूरे किए उसे लाइसेंस दे दिया गया था। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने भी इस पर सख्ती दिखाते हुए निरीक्षण रिपोर्ट में गोलमोल जानकारी देने वालों पर कार्रवाई के निर्देश दिए हैं।
fake doctor Case : बेसमेंट पार्किंग पर दो विभाग खेल रहे
शहर के आधा दर्जन बड़े निजी अस्पतालों में बेसमेंट में पार्किंग की जगह दवा दुकानें चलते पाईं गईं और डॉक्टरों के चैंबर बनाए गए थे। नगरनिगम ने इन्हें सील कर दिया, बाद में उसके अधिकारी चुप्पी मार गए। दो अस्पतालों के नक्शे में भी गड़बड़ी मिली थी। लेकिन स्वास्थ्य विभाग ने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की। मेडिकल स्टोर, डॉक्टर चैंबर और क्लीनिक संचालित होने के मामले में भी विभाग ने आंख बंद कर रखी है। अभी भी बेसमेंट में कारोबार चल रहा है। इस मामले में नगरनिगम और स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी खेल रहे हैं।
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