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NEET Success Story: राजस्थान के श्रवण कुमार ने झोपड़ी में देखा सपना, पिता ने शादियों में बर्तन धोकर बेटे को बना दिया डॉक्टर

NEET Success Story: बालोतरा के नरेवा, खट्टू गांव के श्रवण कुमार की कहानी दिल को छू लेती है। आर्थिक तंगी में पले-बढ़े श्रवण के पिता रेखाराम मजदूरी और शादियों में बर्तन धोकर परिवार चलाते थे।

जयपुरJun 18, 2025 / 01:39 pm

SAVITA VYAS

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फोटो- पत्रिका नेटवर्क

सविता व्यास/जयपुर। बालोतरा के नरेवा, खट्टू गांव के श्रवण कुमार की कहानी दिल को छू लेती है। आर्थिक तंगी में पले-बढ़े श्रवण के पिता रेखाराम मजदूरी और शादियों में बर्तन धोकर परिवार चलाते थे। पक्का मकान तक न था और नीट 2025 के परिणाम वाले दिन श्रवण झोपड़ी बनाते हुए मिले। दसवीं के बाद आर्थिक मजबूरी ने उन्हें फैक्ट्री में काम करने को मजबूर किया, मगर डॉक्टर बनने का सपना कभी नहीं मरा।
शिक्षक चिमनाराम और एनजीओ ‘फिफ्टी विलेजर्स’ ने उनकी प्रतिभा को निखारा, आर्थिक और शैक्षणिक मदद दी। दिन-रात की मेहनत से श्रवण ने नीट 2025 में 700 में से 556 अंक हासिल कर ऑल इंडिया रैंक 9754 पाई। उनकी सफलता ने परिवार में खुशियों की लहर दौड़ा दी। पिता रेखाराम की आंखें छलकीं, ‘अब बर्तन धोने से मुक्ति मिलेगी।’ पूर्व सीएम अशोक गहलोत ने ट्वीट कर बधाई दी, बताते हुए कि इंदिरा गांधी स्मार्टफोन योजना से श्रवण की मां को मिले फोन ने उनकी ऑनलाइन पढ़ाई को गति दी।

मजदूर की बेटी ने छू लिया आकाश

जोधपुर के बालेसर की किरण सांखला की कहानी हिम्मत की मिसाल है। मजदूर पिता खुशालाराम माली खानों में पसीना बहाकर परिवार पालते थे।

किरण सांखला
आर्थिक तंगी और सीमित संसाधनों के बीच किरण ने हार नहीं मानी। स्थानीय शिक्षकों और स्व-अध्ययन के दम पर उन्होंने नीट 2025 में ऑल इंडिया रैंक 134 हासिल की।
गांव में शिक्षा की सुविधाएं कम थीं, फिर भी किरण ने पिता के विश्वास को टूटने नहीं दिया। पिता कहते हैं, ‘बेटी ने मेरे सपने को सच कर दिखाया।’ किरण की मेहनत ने पूरे गांव को गर्व से भर दिया और उनकी कहानी हर उस बच्चे को प्रेरित करती है] जो संसाधनों की कमी से जूझ रहा है।

तीन भाई-बहनों का डॉक्टर बनने का सपना

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हनुमानगढ़ जंक्शन के शुभ बत्रा और उनकी जुड़वां बहनें रिद्धि व सिद्धि ने नीट 2025 में इतिहास रचा। शुभ ने पहले प्रयास में ऑल इंडिया रैंक 188 हासिल की, जबकि रिद्धि और सिद्धि ने दूसरे प्रयास में सफलता पाई। पिता डॉ. निशांत बत्रा, मां विनीता और दादा केवलकृष्ण के मार्गदर्शन ने उन्हें प्रेरित किया।
सीकर और हनुमानगढ़ में कोचिंग के बाद उनकी मेहनत रंग लाई। शुभ न्यूरोसर्जन बनना चाहते हैं। मां विनीता कहती हैं, ‘तीनों बच्चों की एक साथ सफलता सपने जैसी है।’ यह परिवार प्रेरणा है कि मेहनत और मार्गदर्शन से हर लक्ष्य हासिल हो सकता है।

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