उनकी पार्थिव देह को अंतिम दर्शनों के लिए जयपुर के संघ शक्ति भवन में रखा गया, जहां हजारों लोग श्रद्धांजलि देने पहुंचे। शुक्रवार, 6 जून को दोपहर 4 बजे झोटवाड़ा के लता सर्किल श्मशान घाट पर उनका अंतिम संस्कार किया गया। श्रीक्षत्रिय युवक संघ के प्रमुख लक्ष्मण सिंह बैण्यांकाबास ने उन्हें मुखाग्नि दी।
नेताओं ने दी श्रद्धांजलि
उनके निधन पर मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा, पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, वसुंधरा राजे, केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा, राजस्थान भाजपा अध्यक्ष मदन राठौड़ और पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट सहित कई नेताओं ने शोक व्यक्त किया। नेताओं ने उनके समाजसेवा और आध्यात्मिक योगदान को याद करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।
जीवन और समाजसेवा का सफर
भगवान सिंह रोलसाहबसर का जन्म 2 फरवरी 1944 को सीकर जिले के रोलसाहबसर गांव में हुआ था। वे मेघ सिंह और गोम कंवर की पांचवीं संतान थे। उनका विवाह सिवाना के ठाकुर तेज सिंह की पुत्री से हुआ। जीवन के अंतिम वर्षों में वे बाड़मेर के गेहूं रोड स्थित ग्राम्य आलोकायन आश्रम में रहते थे। इस आश्रम में वे युवाओं को संस्कार, अनुशासन, कर्तव्यनिष्ठा और राष्ट्रभक्ति की शिक्षा देने के लिए नियमित शिविर आयोजित करते थे। उनके आश्रम में पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट, केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत सहित कई प्रमुख नेता और जनप्रतिनिधि दौरा कर चुके हैं।
राजनीति से दूरी, समाज के लिए समर्पण
भगवान सिंह ने हमेशा राजनीति से दूरी बनाए रखी और समाज के उत्थान को अपना ध्येय बनाया। उनकी श्रीक्षत्रिय युवक संघ के साथ यात्रा 1963 में रतनगढ़ (चूरू) में आयोजित सात दिवसीय प्रशिक्षण शिविर से शुरू हुई। 1989 में उन्हें संघ का प्रमुख बनाया गया। उन्होंने देशभर में 500 से अधिक शिविरों में भाग लिया और क्षत्रिय समाज को संगठित करने के साथ-साथ नैतिक मूल्यों और चारित्रिक उत्थान का संदेश दिया। उन्होंने श्रीप्रताप फाउंडेशन की स्थापना कर समाज और जनप्रतिनिधियों के बीच की खाई को पाटने का प्रयास किया। साथ ही, यथार्थ गीता के प्रचार-प्रसार के लिए अड़गड़ानंदजी महाराज के मार्गदर्शन में देशभर में आध्यात्मिक संदेश पहुंचाया।
नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा
4 जुलाई 2021 को भगवान सिंह ने श्रीक्षत्रिय युवक संघ का नेतृत्व लक्ष्मण सिंह बैण्यांकाबास को सौंपा और संरक्षक की भूमिका निभाई। इसके बाद भी वे युवाओं के लिए मार्गदर्शक और प्रेरणास्रोत बने रहे। उनके सादा जीवन और उच्च विचारों ने नई पीढ़ी को संस्कार और राष्ट्रसेवा की प्रेरणा दी। उनके निधन से क्षत्रिय समाज ने एक महान संरक्षक खो दिया, जिनके योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा।