शिप्रा गुप्ता जयपुर। ’राजस्थान का जहाज’ यानी ऊंटों के संरक्षण, उनके साथ हो रहे अत्याचार रोकने और इलाज के लिए बस्सी में कैमल रेस्क्यू सेंटर करीब 14 वर्ष से चल रहा है। वर्ष 2011 से ऊंट बचाव केंद्र (सीआरसी) ऊंटों को बचाने, उनका इलाज करने और पुनर्वास के लिए काम कर रहा है।
दरअसल वर्ष 2001 में इंग्लैंड से आए डॉ. रिचर्ड और डॉ. एमा मोरिस ने कैमल वेलफेयर प्रोजेक्ट की शुरुआत हेल्प इन सफरिंग जयपुर से की थी। इसके जरिए मोबाइल क्लिनिक वैन शुरू हुई, जो प्रदेश के दूरदराज के इलाकों में पहुंचती है। सीआरसी में विभिन्न जगहों से रेस्क्यू किए गए ऊंटों का उपचार किया जाता है।
वर्तमान में बेंगलूरु, बिहार, पश्चिम बंगाल से रेस्क्यू 10 ऊंट इस सेंटर में एडमिट हैं, जिसमें ब्लाइंड, ट्यूमर से ग्रस्त, स्लॉटर के लिए जा रहे, सर्कस में हो रहे अत्याचारों से रेस्क्यू, स्किन डिजीज से पीड़ित ऊंट हैं। इसके अलावा कई ऊंट पालक भी अपने ऊंट के इलाज के लिए आते हैं। इन ऊंटों का इलाज के साथ ही दवाइयां भी मुफ्त दी जाती हैं। वहीं पुष्कर, जैसलमेर और नागौर में ऊंटों के लिए वार्षिक उपचार शिविर भी आयोजित किया जाता है। जयपुर में डॉ. अभिनव स्वामी और बस्सी में डॉ. हिमांशु बर्मन ऊंटों की सेवा कर रहे हैं।
कठपुतली शो से कर रहे जागरूक
कैमल वेलफेयर प्रोजेक्ट इंचार्ज डॉ अभिनव स्वामी ने बताया कि रात के समय दुर्घटना से बचाने के लिए ऊंट गाड़ी में रिलेक्टर लगाए जाते हैं। साथ ही गाड़ी पर हेल्पलाइन नंबर भी लगाए हैं, जिससे ऊंट मालिक मोबाइल क्लिनिक और सेंटर से संपर्क कर सकता है। इसके अलावा लोग ऊंट की नाक में मेटल या लकड़ी की नकेल लगाते हैं, जिससे उन्हें घाव हो जाता है। इसके लिए हमने नायलॉन की नकेल बनाई है, जो घाव होने से रोकती है। प्रदेश के गांव-गांव और मेलों में लोगों को वर्कशॉप और कठपुतली शो से ऊंट पालकों को जागरूक करते हैं।
हर वर्ष 3-5 हजार ऊंटों का इलाज
मोबाइल क्लीनिक के जरिए हर वर्ष लगभग 3 से 5 हजार ऊंटों का निशुल्क इलाज किया जाता है। अब तक दोनों सेंटर्स ने 95 हजार 296 ऊंटों का मोबाइल क्लिनिक और 17 हजार 471 ऊंटों का शिविर के जरिए निशुल्क इलाज किया है। 33 हजार 684 ऊंटों की डिवॉर्मिंग भी की गई है।