पंचायत और शहरी निकाय से लेकर विधानसभा-लोकसभा चुनाव या प्रमुख राजनीतिक पदों पर नियुक्तियों तक में जातिगत सियासत होती रही है। करीब 25 साल पहले जाट समाज ने अपने आरक्षण के लिए शक्ति प्रदर्शन किया और 10 साल से अधिक समय तक गुर्जर सहित 5 जातियों के आरक्षण को लेकर हिंसक शक्ति प्रदर्शन हुआ। कुछ वर्ष पहले सैनी समाज ने भी रास्ता रोककर अपनी ताकत दिखाई। टीएसपी क्षेत्र में आदिवासी वर्ग ने भी बड़ा आंदोलन किया। इसके अलावा वर्ष 2023 में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले इंडिया गठबंधन के सियासी एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने जातिगत जनगणना का निर्णय कर उसके लिए अधिसूचना जारी करवाई।
राजनीति भी कम नहीं हुई
- अनारक्षित वर्ग में आर्थिक रूप से पिछड़े परिवारों को आरक्षण का लाभ दिलाने के लिए विधायक घनश्याम तिवाड़ी ने मुहिम शुरू की और अपनी अलग पार्टी भी बनाई।
- आर्थिक रूप से पिछड़े उच्च जाति समुदायों को सामाजिक न्याय की मांग उठाते हुए लोकेंद्र सिंह कालवी और देवी सिंह भाटी व अन्य ने सामाजिक न्याय मंच की स्थापना की। वर्ष 2003 में इसके बैनर पर कई नेताओं ने विधानसभा चुनाव भी लड़ा।
- वर्ष 2007 के बाद बार गुर्जर आंदोलन हुआ और रेल-पटरियों तक को जाम किया गया।
- जाट आरक्षण आंदोलन होने पर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने सीकर की रैली में जाटों को आरक्षण देने की घोषणा की।
चुनाव पर सीधे असर की संभावना नहीं
परिसीमन का जातिगत जनगणना से कोई सीधा संबंध नहीं है, लेकिन जातिगत आधार पर जनगणना होने से विभिन्न समाजों की आर्थिक रूप से कमजोर जातियों का पता चल सकेगा।
जातिगत जनगणना का सफर
पहली बार – वर्ष 1931 में अंग्रेजी शासन के समय हुई। दूसरी बार- वर्ष 2011 में यूपीए शासन में देशभर में सामाजिक आर्थिक जातिगत जनगणना हुई। जनगणना 2011 के साथ नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर (एनपीआर) के लिए जुटाई गई जानकारी के आधार पर यह जनगणना हुई, जिसमें आर्थिक स्थिति से संबंधित आंकड़ों का तो तत्कालीन यूपीए सरकार ने इस्तेमाल किया लेकिन जाति आधारित आंकड़ों को सार्वजनिक नहीं किया गया। तीसरी बार- इंडिया गठबंधन ने जातिगत जनगणना की मांग प्रमुखता से उठाई। वर्ष 2023 में राजस्थान में जातिगत जनगणना के लिए अधिसूचना जारी हुई। अबकी बार….अब वर्ष 2025 में केन्द्र सरकार ने जनगणना के साथ जातिगत जनगणना की घोषणा की।
क्या संभव है जातिगत जनगणना
जनगणना से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि जनगणना में जो जानकारी जुटाई जाती है उसमें एक प्रश्न जोड़ना पडेगा और उससे जातिगत जनगणना आसानी से हो जाएगी। इसमें कोई कानूनी दिक्कत नहीं है, क्योंकि धर्म के आधार पर आंकड़े पहले से ही जारी किए जा रहे हैं।