जयपुर. प्रदेश में फेजवाइज कॉम्पैक्ट सिटी डवलपमेंट के कंसेप्ट को नई टाउनशिप नीति से हटाया जा रहा है। इससे शहरों में निर्धारित क्षेत्र में सुविधाओं के साथ सुनियोजित बसावट की उम्मीद पूरी नहीं हो पाएगी। जबकि, नगर नियोजक लगातार इसकी जरूरत जताते रहे हैं।
हालांकि कहा तो यह जा रहा है कि इस संबंध में अलग से गाइड लाइन जारी की जाएगी, लेकिन माना जा रहा है कि बिल्डर व डवलपर्स के दबाव में अफसर बैकफुट पर आ गए हैं। मुख्य नगर नियोजक मुकेश मित्तल ने इस मामले में अनभिज्ञता जता दी।
सुविधाओं के साथ करना होता डवलपमेंट प्रस्तावित कंसेप्ट के तहत चयनित इलाकों में पेयजल और विद्युत आपूर्ति की उपलब्धता या संभावना, मास्टर प्लान, रोड नेटवर्क, मौजूदा एरिया से नजदीकी, क्षेत्र की विकास क्षमता सहित अन्य सुविधाओं की आसान उपलब्धता पर ही टाउनशिप लाने की अनुमति दी जानी थी। इससे अलग-अलग जगह की बजाय इन्हीं चिन्हित क्षेत्रों में टाउनशिप के विकास की मंजूरी दी जाती। एक क्षेत्र के 75 प्रतिशत हिस्से का ले आउट प्लान मंजूर हो जाता, तब निकाय की अधिकृत कमेटी अगले क्षेत्र को डवलपमेंट के लिए खोलती।
हालात और जरूरत अभी यह स्थिति: शहर का दायरा बेतरतीब तरीके से फैल रहा है। एक योजना की दूसरी योजना से दूरी कई किलोमीटर है। वहां तक सुविधाएं पहुंचाने के लिए हर वर्ष करोड़ों रुपए का बजट चाहिए। इसमें पानी, बिजली, सड़क, सीवर, ड्रेनेज पर ही 75 फीसदी राशि खर्च होगी। इसके बावजूद वहां तक सुविधाएं पहुंचना किसी चुनौती से कम नहीं है।
-जरूरत इसलिए: गुरुग्राम में तो ऐसा हुआ कि सुविधाएं पहले पहुंची और इंटीग्रेटेड डवलपमेंट बाद में शुरू हुआ। यहां चिन्हित क्षेत्र के 75 प्रतिशत एरिया का ले-आउट प्लान मंजूर होने के बाद ही अगले क्षेत्र टाउनशिप डवलपमेंट के लिए खोला गया। यानी, बेतरतीब तरीके से अलग-अलग जगह टाउनशिप बसाने की अनुमति नहीं।
यह भी मिले सुविधा -इस तरह डवलपमेंट के कारण नॉन मोटराइज्ड वाहन का उपयोग भी बढ़ता। लोगों को कम दूरी में ही मूलभूत सुविधाएं मिलती हैं। -कम क्षेत्रफल में घनी बसावट होने पर आस-पास बड़ा खुला हिस्सा उपलब्ध हो जाता है। इसे हरियाली के रूप में विकसित कर सकते हैं।