सेना ने खुद किया था सख्त निर्देश जारी पठानकोट एयरबेस हमले के बाद सेना ने स्पष्ट निर्देश जारी किए थे कि सेना की वर्दी या उसके जैसी किसी भी पोशाक की बिक्री केवल अधिकृत डिपो या दुकानों के जरिए ही होनी चाहिए। अनाधिकृत विक्रेताओं और खरीदारों पर भारतीय दंड संहिता की धारा 140 और 171 के तहत कार्रवाई का प्रावधान है। फिर भी जैसलमेर में ना तो ठोस निगरानी हो रही है और ना ही कोई सघन अभियान चलाया गया है।
यह कहता है कानून: जुर्माना और सजा
-सेना की वर्दी का कपड़ा बेचने के लिए सेना मुख्यालय से अनुमति लेनी होती है। सेना यूनिफार्म या उस जैसी, वर्दी पहनना गैरकानूनी भी है। इसके लिए 500 रुपए जुर्माना और अधिकतम तीन महीने तक की सजा भी हो सकती है। -सेना की वर्दी का कपड़ा बनाने वाली भारत में कुछ ही मिल्स हैं। इनमें एक पंजाब के फगवाड़ा में और 2 महाराष्ट्र में बताई जाती हैं।
-केंद्रीय गृह मंत्रालय की तरफ से सभी राज्यों को निर्देश दिए हुए हैं कि जो लोग भी अनाधिकृत तरीके से सेना, नौ सेना और वायुसेना की वर्दी या उसके जैसी दिखने वाली यूनिफॉर्म पहनते हैं, उनके खिलाफ भादसं. की धारा 140 और 171 के तहत मामला दर्ज किया जा सकता है।
जांच व निगरानी की दरकार
भले ही सीमावर्ती जिले की संवेदनशीलता की बार-बार दुहाई दी जाती रही हो, लेकिन बाजारों में सेना वर्दी जैसे कपड़े खुलेआम बिक रहे हैं। सेना से सेवानिवृत्त अधिकारियों ने बताया कि सेना की वर्दी बाजार में मिलना पूरी तरह अवैध और असुरक्षा को बढ़ाने वाला है। वर्दी का सम्मान और पहचान दोनों सुरक्षा से जुड़ी हैं। यदि बिना नियंत्रण के वर्दी जैसे कपड़े बिकते रहे तो जैसलमेर जैसे सीमा जिलों में खतरा कभी भी सामने आ सकता है।
हकीकत: कई दुकानदारों ने बेचना किया बंद, कहीं हो रही बेरोकटोक बिक्री
विगत वर्षों में हालांकि कई दुकानदारों ने सेना की वर्दी का कपड़ा रखना बंद कर दिया, लेकिन आज भी स्वर्णनगरी की आधा दर्जन से अधिक दुकानों पर सेना की वर्दी का कपड़ा खुली बिक्री के लिए सुलभ है। हालांकि दुकानदारों का कहना है कि वे खरीदार की जांच-परख के बाद ही उसे कपड़ा बेचते हैं। ऐसे ही कई दुकानों पर फौजियों की वर्दी का हिस्सा टोपी, जैकेट, टी-शर्ट बेचे जा रहे हैं।