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जैसलमेर

पहलगाम हमले से नहीं लिया सबक, अभी भी खुले में बिक रही पुलिस-सेना की वर्दी

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हाल ही में हुए आतंकी हमले में आतंकी सेना की वर्दी पहनकर आए थे, जिससे उन्हें सुरक्षा बलों के बीच पहचानना मुश्किल हो गया था।

जैसलमेरApr 26, 2025 / 08:09 pm

Deepak Vyas

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हाल ही में हुए आतंकी हमले में आतंकी सेना की वर्दी पहनकर आए थे, जिससे उन्हें सुरक्षा बलों के बीच पहचानना मुश्किल हो गया था। इस भयावह घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया, लेकिन सीमांत जैसलमेर जिले में अब भी बाजारों और ऑनलाइन प्लेटफॉम्र्स पर सेना और पुलिस जैसी वर्दियां बिक रही हैं। बाजारों में बिक रहे सेना-अद्र्धसैनिक बलों की यूनिफार्म जैसे कपड़े सुरक्षा बलों की छवि पर गलत प्रभाव डालते हैं। कई लोग महज शौक पूरा करने के लिए इन बलों की ड्रेस को धारण कर लेते हैं, जबकि किसी भी बल की वर्दी की अपनी शान होती है। सुरक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक यह लापरवाही सीमा क्षेत्र में किसी बड़े खतरे को न्योता दे सकती है। गौरतलब है कि कश्मीर के पहलगाम में सेना की वर्दी में आए आतंकियों ने जिस तरह सुरक्षा व्यवस्था को चुनौती दी, उससे साफ हो गया कि पुलिस या सेना जैसी पोशाकें कैसे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बन सकती हैं। इसके बावजूद जैसलमेर जैसे सरहदी जिले में अब भी आम दुकानों से सेना, बीएसएफ और पुलिस जैसी वर्दियां या उनके जैसे कपड़े बेचे जा रहे हैं। हालांकि कुछ लोग इन्हें शौक में पहनते हैं, लेकिन समाजकंटकों के हाथ में यह बड़ा खतरा बनने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। गौरतलब है कि वर्ष 2016 में पठानकोट हमले के बाद आर्मी की तरफ से लोगों से अपील की गई थी कि इस तरह के कपड़े ना पहनें जो आर्मी की वर्दी की तरह दिखते हों। साथ ही दुकानदारों से भी अपील की थी कि वह कॉम्बेट क्लोथ यानी सेना के जवानों की तरह की पोशाक आम लोगों को ना बेचें। इसके साथ ही प्राइवेट सुरक्षा एजेंसियों से भी कहा था कि वह अपने गाड्र्स की वर्दी कॉम्बेट पैटर्न की ना बनाएं।
सेना ने खुद किया था सख्त निर्देश जारी पठानकोट एयरबेस हमले के बाद सेना ने स्पष्ट निर्देश जारी किए थे कि सेना की वर्दी या उसके जैसी किसी भी पोशाक की बिक्री केवल अधिकृत डिपो या दुकानों के जरिए ही होनी चाहिए। अनाधिकृत विक्रेताओं और खरीदारों पर भारतीय दंड संहिता की धारा 140 और 171 के तहत कार्रवाई का प्रावधान है। फिर भी जैसलमेर में ना तो ठोस निगरानी हो रही है और ना ही कोई सघन अभियान चलाया गया है।

यह कहता है कानून: जुर्माना और सजा

-सेना की वर्दी का कपड़ा बेचने के लिए सेना मुख्यालय से अनुमति लेनी होती है। सेना यूनिफार्म या उस जैसी, वर्दी पहनना गैरकानूनी भी है। इसके लिए 500 रुपए जुर्माना और अधिकतम तीन महीने तक की सजा भी हो सकती है।
-सेना की वर्दी का कपड़ा बनाने वाली भारत में कुछ ही मिल्स हैं। इनमें एक पंजाब के फगवाड़ा में और 2 महाराष्ट्र में बताई जाती हैं।
-केंद्रीय गृह मंत्रालय की तरफ से सभी राज्यों को निर्देश दिए हुए हैं कि जो लोग भी अनाधिकृत तरीके से सेना, नौ सेना और वायुसेना की वर्दी या उसके जैसी दिखने वाली यूनिफॉर्म पहनते हैं, उनके खिलाफ भादसं. की धारा 140 और 171 के तहत मामला दर्ज किया जा सकता है।

जांच व निगरानी की दरकार

भले ही सीमावर्ती जिले की संवेदनशीलता की बार-बार दुहाई दी जाती रही हो, लेकिन बाजारों में सेना वर्दी जैसे कपड़े खुलेआम बिक रहे हैं। सेना से सेवानिवृत्त अधिकारियों ने बताया कि सेना की वर्दी बाजार में मिलना पूरी तरह अवैध और असुरक्षा को बढ़ाने वाला है। वर्दी का सम्मान और पहचान दोनों सुरक्षा से जुड़ी हैं। यदि बिना नियंत्रण के वर्दी जैसे कपड़े बिकते रहे तो जैसलमेर जैसे सीमा जिलों में खतरा कभी भी सामने आ सकता है।

हकीकत: कई दुकानदारों ने बेचना किया बंद, कहीं हो रही बेरोकटोक बिक्री

विगत वर्षों में हालांकि कई दुकानदारों ने सेना की वर्दी का कपड़ा रखना बंद कर दिया, लेकिन आज भी स्वर्णनगरी की आधा दर्जन से अधिक दुकानों पर सेना की वर्दी का कपड़ा खुली बिक्री के लिए सुलभ है। हालांकि दुकानदारों का कहना है कि वे खरीदार की जांच-परख के बाद ही उसे कपड़ा बेचते हैं। ऐसे ही कई दुकानों पर फौजियों की वर्दी का हिस्सा टोपी, जैकेट, टी-शर्ट बेचे जा रहे हैं।

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