इसलिए गुजरात का रुख
जीरे व अन्य फसलों से जुड़े व्यापारी राजस्थान के किसानों को अच्छा रेस्पांस देते है। ऊंझा जैसी मंडी में पहुंचने के बाद किसानों की फसलों की हाथों हाथ बिकवाली हो जाती है और उसके दाम भी मिल जाते हैं। किसानों को वहां रुकने की जरुरत नहीं पड़ती। कैश मार्केट होने के साथ समय की बचत किसानों को गुजरात की तरफ खींचता है।जालोर में जीरे का बड़ा उत्पादन क्षेत्र
जालोर-सांचौर जिले की बात करें तो 1 लाख 35 हजार हैक्टेयर क्षेत्र से अधिक में जीरे की औसतन हर साल बुवाई होती है। वहीं प्रति वर्ष 60 से 70 हजार मैट्रिक टन जीरे का उत्पादन होता है। 80 से 90 प्रतिशत किसान ऊंचा की तरफ रुख करते हैं।फैक्ट फाइल
- * 1 लाख 50 हजार हैक्टेयर बुवाई क्षेत्र है जीरे का
- * 60 से 65 हजार मीट्रिक टन उत्पादन होता है जीरे का सालाना
- * 50 हजार हैक्टेयर क्षेत्र में होती है इसबगोल की बुवाई जिले में
- * 30 हजार मीट्रिक टन के करीब इसबगोल का उत्पादन
जीरे का अच्छा खासा प्रोडक्शन होने के बावजूद किसानों को जीरे की बिकवाली के लिए ऊंझा ही जाना होता है। वहां ही प्रोसेसिंग यूनिट भी स्थापित है। यदि जालोर में ही बड़े एक्सपोर्ट आ जाएं और यही प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित हो जाए तो बेहतर क्वालिटी विदेशों तक पहुंच पाएगी। दूसरी तरफ किसानों का समय बचने के साथ मुनाफा बढ़ेगा।
- रतनसिंह कानीवाड़ा, किसान नेता