इस तरह बदल जाती है पानी की क्वालिटी
नर्मदा परियोजना से 144 किमी सफर तय कर जालोर शहर तक पानी पहुंचता है। इधर, रणछोडनग़र, कुआबेर, पहाड़पुरा समेत अन्य स्थानों से स्थापित 33 से अधिक ट्यूबवैल का पानी भी जालोर शहर के सिटी हैड पंपिंग स्टेशन पर मिश्रित किया जाता है। जिसके बाद पानी को सप्लाई किया जाता है। ट्यूबवैल के पानी में खारापन होने के साथ इसमें लोराइड की अधिकता भी है। ऐसे में दो क्वालिटी का पानी मिश्रित होने के बाद गुणवत्ता में कमी आ जाती है।260 करोड़ से अधिक का प्रोजेक्ट
नर्मदा परियोजना का एफआर प्रोजेक्ट 260 करोड़ से अधिक का है। प्रोजेक्ट से जालोर को 60 से 70 लाख लीटर से अधिक शुद्ध पानी प्रतिदिन बेहतर स्थिति में मिलता है। प्रोजेक्ट से जालोर शहर समेत 300 के करीब गांव कस्बे लाभान्वित होते हैं। जालोर शहर की बात करें तो 60 से 70 लाख लीटर पानी में 30 से 35 लाख लीटर पानी ट्यूबवैल का मिश्रित किया जाता है। जो प्रोजेक्ट की अहमियत पर सवाल खड़े करता है।विभाग-पहले से जो तय मानक उसके अनुसार सप्लाई
विभाग के अधिकारियों का कहना है कि प्रोजेक्ट में तय मानक के अनुरूप 100 अनुपात 35 में पानी की सप्लाई की जा रही है। जिसके अनुसार प्रति 100 लीटर नर्मदा के पानी में 35 लीटर स्थानीय जलस्रोत के पानी का मिश्रण किया जाता है। विभाग का यह भी कहना है कि यदि नर्मदा परियोजना से सप्लाई बंद है तो फिर पूरी तरह से ट्यूबवैल से मिलने वाले पानी पर ही सप्लाई की जाती है।मिश्रित पानी की सप्लाई, लोग वॉटर कैन मंगवाते हैं
नर्मदा परियोजना से लगभग एक दशक से शुद्ध पानी की आपूर्ति की जा रही है। उसके बावजूद शहरी क्षेत्र में पूरी तरह से शुद्ध पानी मुहैया नहीं हो रहा। इस विकट हालात में लोगों को पीने के पानी के लिए वॉटर कैन मंगवाने पड़ते है। सीधे तौर पर पानी की गुणवत्ता में कमी से वॉटर कैन और प्लांट के पनपने का बड़ा कारण है। जालोर शहरी क्षेत्र की ही बात करें तो 30 से अधिक वॉटर प्लांट स्थापित है।उठ चुकी मांग, पूरा शुद्ध पानी मिले
नर्मदा परियोजना से 100 प्रतिशत शुद्ध पानी की सप्लाई की मांग शहरवासी कर चुके हैं। लेकिन उसके बावजूद मिश्रित पानी की आपूर्ति ही हो रही है। नर्मदा परियोजना से मिलने वाला पानी फिल्टर्ड, लोराइडमुक्त होने के साथ पूरी तरह से शुद्ध है। लेकिन उसके बावजूद समस्या के स्थायी समाधान पर ध्यान नहीं दिया जा रहा।इनका कहना है
नर्मदा परियोजना का पानी तीन जगह पंपिंग होने के बाद जालोर तक पहुंचता है। वॉल्टेज के उतार चढ़ाव की परेशानी भी रहती है। ऐसे में पानी की कमी के चलते लोकल जलस्रोतों के पानी पर भी हमारी निर्भरता रहती है।-संजय शर्मा, एसई, जलदाय विभाग, जालोर