इसकी बड़ी वजह यह है कि वन विभाग ने अब तक इन्हें सहेजने एक भी अभियान नहीं चलाया, केवल ग्रामीणों की सूचना पर गांव में मिले मगरमच्छ को पार्क में शिफ्ट करते हैं। इन्हें संरक्षित करने व मगरमच्छों के भोजन के लिए सालाना 35 से 40 लाख रुपए खर्च होते हैं। 18 साल में हम केवल 6 करोड़ रुपए मगरमच्छों की देखरेख व पार्क को संवारने में लगा चुके हैं। जबकि शुरुआत में तब पार्क की स्थापना हुई तो तीन से चार करोड़ रुपए खर्च हुए थे।
World Crocodile Day: वन अफसरों ने इसे बनाया पॉकेट मनी
मगरमच्छों को संरक्षित करने के लिए वाइल्ड लाइफ विभाग से सालाना 35 करोड़ जरूर मिलते हैं, लेकिन इतने पैसे को वन अफसर पॉकेट मनी की तरह इस्तेमाल करते हैं। जबकि सैलानियों से भी मोटी एंट्री फीस के रूप में हर साल लाखों रुपए आती है। इसके बाद भी पार्क बदहाल है। पार्क का टर्टल पार्क और साइंस पार्क भी बदहाल है। यहां जो भी अफसर आया पार्क को पैसों का पेड़ बनाकर केवल देखरेख की औपचारिकता पूरी की है।
100 से अधिक मगरमच्छ है आसपास के गांव में
क्रोकोडाइल पार्क के अलावा कर्रा नाला डेम, दर्रीटांड़, कल्याणपुर, मधुआ, सहित कोटमीसोनार गांव के ही जगात तालाब, नया तालाब, बंधवा तालाब, मौहाई तालाब, जोगिया तालाब, उपरोहित तालाब सहित आधा दर्जन गांव के तालाबों में मगरमच्छ हैं। बारिश के दिनों में सबसे अधिक खतरा रहता है। क्योंकि बारिश के दिनों में
मगरमच्छों के अंडे फूटते हैं और गांव की गलियों में ये छिपकली की तरह बिलबिलाते हैं।
खुराक में केवल चंद किलो मछलियां
वन विभाग के मुताबिक अब तक आसपास के तालाबों से 380 से अधिक मगरमच्छों की शिफ्टिंग कर चुके हैं। वहीं डेम में भी लगभग 400 मगरमच्छ निवासरत हैं। इनकी संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। लेकिन इसके खानपान के लिए केवल चंद रुपयों की मछलियों के बच्चे को डाल दिया जाता है। यह मछली बड़ी होकर मगरमच्छों के खुराक बनती है। शेष रकम वन विभाग के अफसरों के लिए खुराक बन जाता है। जांजगीर-चांपा डीएफओ हिमांशु डोंगरे ने कहा की जब एक ही तालाब में इनकी संख्या बढ़ेगी तो आपस में इनका टकराव होगा। भीड़ से बचने के लिए बच्चे इधर उधर भागते हैं और आसपास के गांव के तालाबों में शिफ्ट हो जाते हैं। इन्हें रेस्क्यू कर पार्क में शिफ्ट करना अनिवार्य नहीं है। फिर भी जब भी हमें अन्य तालाब में मगरमच्छ मिलते हैं तो उसे पकडक़र पार्क में शिफ्ट करते हैं।