सुरेंद्र डैला चिड़ावा(झुंझुनूं)। प्रदेश में जब भूजल स्तर गिरता जा रहा है और गर्मियों में अक्सर हालात खराब हो जाते हैं। ऐसे में सीकर के दाता निवासी किसान सुंडाराम वर्मा की एक लीटर पानी से पौधे तैयार करने की ड्राई फार्मिंग तकनीक फायदेमंद साबित हो रही है।
चिड़ावा से करीब दस किमी दूर पिलानी रोड पर देवरोड पंचायत के लोगों ने भी कम पानी में पौधे लगाकर पर्यावरण संरक्षण व भूजल बचाने की दिशा में सकारात्मक प्रयास किए हैं। इस तकनीक में पौधे को शुरुआती दौर में एक लीटर पानी से सींचा गया उसके बाद बारिश के पानी को सिंचित कर उसकी नमी से ही पौधे को पानी आपूर्ति पूरी हो जाती है।
लगवा चुके डेढ़ लाख पौधे
किसान सुंडाराम वर्मा एक लीटर में पौधे तैयार करने की तकनीक से करीब डेढ़ लाख से ज्यादा पौधे लगवा चुके हैं। जिसमें से अधिकतर पौधे जिंदा भी हैं। उन्होंने सीकर, चूरू, झुंझुनूं समेत प्रदेशभर में इस विधि से पौधे लगाए हैं। किसान वर्मा से बहुत से लोग इस विधि से संबंधित जानकारी लेने पहुंचते हैं। सुंडाराम का कहना है कि भूजल स्तर गिरता जा रहा है। ऐसे में कम पानी में पौधे तैयार करने पर जोर देना होगा।
आठ हेक्टेयर में लगाए गए पौधे
देवरोड गांव के मुक्तिधाम की आठ हेक्टेयर जमीन में 7500 पौधे लगाए गए हैं। इससे पहले यह भूमि झाड़-झंखाड़ से भरी हुई थी। सितंबर 2023 में ग्रामीणों ने मिलकर इसे समतल करवाया और लगभग 25 लाख रुपये की लागत से चारदीवारी बनवाई। एचडीएफसी बैंक के सहयोग से शीशम, नीम, लेसूवा, पीपल और बड़ के पौधे रोपे गए, जो अब 8-10 फीट ऊंचाई तक बढ़ चुके हैं। खास बात यह है कि इन पौधों को एक बार भी पानी नहीं दिया गया, फिर भी वे पूरी तरह हरे-भरे हैं। मनरेगा के श्रमिकों द्वारा इनकी देखभाल की जा रही है।
कैसे होती है एक लीटर पानी में खेती?
किसान सुंडाराम वर्मा ने नई दिल्ली के पूसा कृषि संस्थान में ड्राई फार्मिंग तकनीक सीखी, जिसमें वर्षा के पानी की नमी को भूमि में संरक्षित रखा जाता है। इस विधि में: बरसात के पानी को जमीन में संचित किया जाता है। मिट्टी में मौजूद खरपतवारों की जड़ों और छोटी नलिकाओं से पानी बाहर निकलता है, जो सामान्यतः भाप बनकर उड़ जाता है। इस नमी को बनाए रखने के लिए मिट्टी की गहरी जुताई की जाती है और नलिकाओं को तोड़ा जाता है। इस प्रक्रिया से बिना सिंचाई के भी पौधों की जड़ें नमी सोखती रहती हैं।
शुष्क क्षेत्रों के लिए फायदेमंद तकनीक
ड्राई फार्मिंग या बारानी खेती विशेष रूप से उन इलाकों के लिए उपयोगी है, जहां बारिश कम होती है और भूमि शुष्क रहती है, जैसे राजस्थान और गुजरात। इस तकनीक में: उपलब्ध सीमित नमी को संरक्षित कर बिना सिंचाई के फसलें उगाई जाती हैं। मिट्टी में नमी बनाए रखने के लिए गहरी जुताई की जाती है और वाष्पीकरण को रोका जाता है। कम पानी में और कम समय में तैयार होने वाली फसलें उगाई जाती हैं।