माघ पूर्णिमा से बड़कुल्ले
शेखावाटी के अधिकांश घरों में बड़कुल्ले फाल्गुन की रंगभरी एकादशी से बनाने लगते हैं। लेकिन तिवाड़ी परिवारों के घर की महिलाएं माघ पूर्णिमा से गोबर के बड़कुल्ले बनाने लग जाती है। इसके लिए लगभग हर दिन बड़कुल्ले, ढाल, तलवार आदि बनाए जाते हैं। इसके बाद माला पिरोकर पहले होली का पूजन किया जाता है। इसके बाद बड़कुल्लों के सहयोग से होली का दहन किया जाता है। होली के दहन के लिए अधिकतर समय बबूल के पेड़ को काम में लिया जाता है।
नवविवाहिता लेती है होली का फेरा
शेखावाटी में नवविवाहिताएं पहली गणगौर अपने पीहर में पूजती है। इसके लिए अधिकतर युवतियां तिवाड़ियों की होली के ही परिक्रमा करती है, इसके बाद गणगौर पूजन करती है। झुंझुनूं शहर में सबसे ज्यादा संख्या में यहीं लोग उमड़ते हैं। अनेक बार होली का दहन बारह बजे बाद होता है। ऐसे में व्रत करने वाली महिलाएं यहीं पर होली की पूजा कर झळ देखने आती है। शाम को व्रत खोल लेती है। पंडित दिनेश मिश्रा ने बताया कि अमूमन होली दहन के समय भद्रा को टाला जाता है, लेकिन शेखावाटी में तिवाड़ियों की होली का दहन भद्रा में होता है। यह परम्परा सैकड़ों वर्ष पुरानी है।