रामायण के जरिए सेवा भाव का संदेश
भागवत ने कहा कि भारत के इतिहास में महान शासकों और योद्धाओं की गाथाएं हैं लेकिन, भारत में कोई भी सम्राटों और महाराजाओं को याद नहीं करता, बल्कि अपने पिता का वचन पूरा करने के उद्देश्य से 14 साल के लिए वनवास जाने वाले राजा (भगवान राम) और उस व्यक्ति (भरत) को याद रखता है जिसने अपने भाई की पादुकाएं सिंहासन पर रख दीं और वनवास से लौटने पर राज्य उसे राज सौंप दिया। उन्होंने कहा कि ये विशेषताएं भारत को परिभाषित करती हैं। जो लोग इन मूल्यों का पालन करते हैं, वे हिंदू हैं और वे पूरे देश की विविधता को एकजुट रखते हैं। हम ऐसे कार्यों में शामिल नहीं होते जो दूसरों को आहत करते हों। शासक, प्रशासक और महापुरुष अपना काम करते हैं लेकिन, समाज को राष्ट्र की सेवा के लिए आगे रहना चाहिए।
अंग्रेजों की नीति का किया खुलासा
सिकंदर के समय से लेकर अब तक हुए ऐतिहासिक आक्रमणों पर भागवत ने कहा कि चुनिंदा बर्बर लोगों ने, जो गुणों में श्रेष्ठ नहीं थे, भारत पर शासन किया तथा इस दौरान समाज में विश्वासघात का चक्र जारी रहा। उन्होंने कहा कि देश का निर्माण अंग्रेजों ने नहीं किया था। अंग्रेजों ने यह धारणा स्थापित करने की कोशिश की कि भारत एकजुट नहीं था लेकिन, यह सच नहीं है। एक तरह से अंग्रेजों ने भारतीय समाज में फूट डालने का काम किया।
संघ में शामिल होने को कोई शुल्क नहीं, जब चाहें बाहर जाएं
मोहन भागवत ने कहा कि संघ को एक ही काम करना है समाज को एकजुट करना, एकजुट रखना और ऐसे जीवन जीने वाले लोगों का निर्माण करना यही संघ का काम है। संघ के कार्य को समझना चाहिए, क्योंकि कई शताब्दियों के बाद भारत में ऐसा काम हुआ है। लोगों से अपील करते हुए मोहन भागवत ने कहा कि मेरा अनुरोध है कि संघ को समझने के लिए आपको संघ के अंदर आना होगा। कोई शुल्क नहीं है, कोई औपचारिक सदस्यता नहीं है और आप जब चाहें बाहर जा सकते हैं।