राजनीतिक संदर्भ और तृणमूल के साथ तनाव
संघ प्रमुख तब बंगाल दौरे पर आ रहे हैं, जब उनके हाल के विवादित बयान को लेकर आरएसएस राजनीतिक चर्चा के केंद्र में है। भागवत के बयान को लेकर आरएसएस और बंगाल की सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस आमने-सामने है। 22 जनवरी को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपनी पार्टी और आरएसएस के बीच राजनीतिक और वैचारिक फर्क को उजागर करते हुए अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन को भारत का वास्तविक स्वतंत्रता दिवस कहने की कड़ी निंदा की थी। ममता ने भागवत के इस बयान को राष्ट्र-विरोधी करार देते हुए उनसे अपना बयान वापस लेने और माफी मांगने की मांग की थी। पर्यवेक्षक का कहना है कि ममता का बयान बंगाल में भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के बीच चल रही प्रतिद्वंद्विता की लड़ाई के बीच आया है, जिसमें आरएसएस प्राय: भाजपा की रणनीतियों में अहम भूमिका निभाता है। यह भी पढ़ें: अंतरराष्ट्रीय कोलकाता पुस्तक मेले का आगाज, पुस्तकें खरीदें, पुरस्कार जीतें https://www.patrika.com/national-news/international-kolkata-book-fair-begins-buy-books-win-prizes-see-photos-19353846 भागवत के दौरे में परिवर्तन को संभावित रूप से केंद्र सरकार, आरएसएस और बंगाल सरकार के नाजुक संबंधों को देखते हुए राजनीतिक माहौल में तालमेल बिठाने के प्रयास के रूप में देखा जा सकता है।
मध्य और दक्षिण बंगाल पर नजर
संघ के सूत्रों के अनुसार मध्य और दक्षिण बंगाल के जिलों में अपने संगठनात्मक उपस्थिति को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित करने की संभावनाएं हैं। मध्य बंगाल में आदिवासी क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने, हाशिए पर मौजूद समुदायों तक पहुंचने और विभिन्न समूहों के बीच अपना आधार मजबूत करने की आरएसएस की व्यापक रणनीति का हिस्सा है। बैठकों में राज्य में संघ की ओर से सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों पर चर्चा होने के साथ ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में अपनी पहुंच बढ़ाने की योजना भी शामिल होगी।