Retired Officers Become Farmers: देश की आत्मा गांवों में बसती है और जो सुकून गांव की मिट्टी में मिलता है, वह शायद ही कहीं और मिले। यही सोच सेवानिवृत्त हो चुके उच्च अधिकारियों को फिर से अपने गांवों की ओर खींच रही है। इतना ही नहीं, यह पीढ़ी फिर से खेत-खलिहानों में जुट गई है, ताकि खेती-किसानी को नए दौर में फिर से उभारा जा सके। यहां कई ऐसे अधिकारी हैं जो खेतों में नवाचारों के जरिए नई फसलों को उगा रहे हैं और दिन-रात मेहनत कर रहे हैं। इससे इन्हें सुकून तो मिल ही रहा है, परंपरागत खेती कर रहे किसानों के लिए भी मिसाल बन रहे हैं।
पांच साल पहले उन्होंने जयपुर से अपने गांव की ओर रुख किया। उनका मानना है कि अगली पीढ़ी को महत्ता बताने के लिए ही इन्होंने खेती-बाड़ी में हाथ आजमाना शुरू किया। हालांकि, पहले तो इन्हें दिक्कत आई, लेकिन इनके हौसलों के आगे मुश्किलें टिक नहीं पाई।
पहले चरण में इन्होंने खेत की मिट्टी की टेस्टिंग करवाई। पीएचक्यू लेवल सही करवाने पर फोकस किया, फिर उसके अनुरूप फसलों को चुना। इतना ही नहीं, माइक्रो फार्मिंग पर फोकस कर रहे सोलंकी रोबोटिक खेती की प्लानिंग के साथ ही बैलून बेस्ड ड्रिप सिस्टम की कवायद में भी जुटे हुए हैं, जिससे आधुनिक पीढ़ी भी कुछ सीख ले सके।
11 साल पहले रिटायर्ड हुए आरएएस, उगा रहे टिश्यू कल्चर केले
ऐसा ही उदाहरण रावतभाटा तहसील के जावदा गांव के इंद्र सिंह सोलंकी का है, जो 43 वर्ष तक सरकारी नौकरी कर अलवर यूआईटी से रिटायर्ड होने के बाद अपने गांव की ओर लौट आए हैं। सीनियर आइएएस रह चुके इंद्र सिंह का 1971 में चयन हुआ था। 2014 में सेवानिवृत्त हो गए। तत्पश्चात उन्होंने खेतों की ओर ध्यान देना शुरू कर लिया। उन्होंने खेती शुरू की और पहले ही प्रयास में अच्छी पैदावार ली। अब इन्होंने केले के 85 हजार पौधे खरीदे। नवाचार के जरिए 30 हैक्टेयर खेत में ये पौधे लगाकर एक साल तक देखरेख की। वर्तमान में गेहूं, बाजरा, सरसों की परंपरागत खेती के साथ ही टिश्यू कल्चर केले की खेती भी कर रहे हैं, जिससे वे सालाना अच्छी कमाई कर रहे हैं।