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योजना
पशुधन विभाग द्वारा चलाई जा रही यह योजना प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक रूप से कमजोर अनुसूचित जाति के लोगों को सशक्त बनाने पर केंद्रित है। योजना का मुख्य उद्देश्य भूमिहीन व बेरोजगार पशुपालकों को बकरी पालन का प्रशिक्षण देकर उनकी आजीविका सुनिश्चित करना है। बकरी का दूध और मांस दोनों ही पोषण और आमदनी के बेहतरीन स्रोत माने जाते हैं। इससे न सिर्फ ग्रामीणों की आय में इजाफा होगा बल्कि कुपोषण की समस्या से भी राहत मिलेगी।मानसून की धमाकेदार एंट्री, IMD का रेड अलर्ट, भारी बारिश और बिजली का खतरा बढ़ा
राज्य सरकार की योजना का ढांचा
राज्य सरकार की योजना के तहत प्रदेश के सभी 75 जनपदों में प्रतिवर्ष 750 बकरी पालन इकाइयां स्थापित की जाएंगी। प्रत्येक जनपद में 10 इकाइयां क्रियान्वित की जाएंगी।- एक इकाई में मिलेगा
- 1 नर बकरा
- 5 मादा बकरियाँ
- प्रति इकाई लागत: ₹60,000
- राज्यांश (सरकारी सहायता): ₹54,000 (90%)
- लाभार्थी अंश: ₹6,000 (10%)
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प्रशिक्षण और पात्रता की शर्तें

- इस योजना का लाभ वही लोग उठा सकेंगे जो निम्नलिखित योग्यताओं को पूरा करते हों:
- आवेदक की आयु 18 वर्ष से अधिक होनी चाहिए।
- वह अनुसूचित जाति का बेरोजगार महिला/पुरुष पशुपालक हो।
- बकरियाँ रखने के लिए उचित स्थान (शेड या खुली जगह) उपलब्ध हो।
- भेड़ एवं बकरी पालन प्रशिक्षण केन्द्र, इटावा या केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान फराह, मथुरा से प्रशिक्षण प्राप्त व्यक्ति को वरीयता दी जाएगी।
- विधवा या निराश्रित महिलाएं होंगी तो उन्हें प्राथमिकता मिलेगी।
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क्या मिलेगा योजना के तहत
- सरकार द्वारा दिए गए फंड का उपयोग निम्नलिखित कार्यों के लिए किया जाएगा:
- नर और मादा बकरियों की खरीद
- बीमा
- चिकित्सा सुविधा
- परिवहन का खर्च
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क्यों है यह योजना अहम
बकरी पालन एक ऐसा व्यवसाय है जिसे कम लागत और कम जोखिम में शुरू किया जा सकता है, लेकिन इससे लाभ अपेक्षाकृत अधिक होता है। यह गरीब और मध्यम वर्गीय पशुपालकों के लिए बहुत ही उपयुक्त विकल्प है। बकरी पालन कुपोषण से लड़ने में सहायक है क्योंकि बकरी का दूध पौष्टिक होता है। इससे महिला सशक्तिकरण को भी बल मिलेगा, क्योंकि अधिकतर लाभार्थी महिलाएं होंगी। ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी क्योंकि यह योजना रोजगार सृजन करेगी।स्थानीय स्तर पर पशु उत्पादकता में वृद्धि होगी।