इस निर्णय के पीछे कारण है, NCTE द्वारा समय-समय पर मांगे गए प्रोफेशनल अप्रेजल रिकॉर्ड (PAR) को निर्धारित समय सीमा में जमा न करना। परिषद ने कॉलेजों से शैक्षणिक सत्र 2022-23 और 2023-24 के लिए आवश्यक जानकारियाँ जैसे – भूमि का दस्तावेज़, भवन की स्थिति, वित्तीय विवरण, फैकल्टी प्रोफाइल, प्रयोगशालाओं की स्थिति और छात्र संख्या से संबंधित दस्तावेज ऑनलाइन माध्यम से मांगे थे। परंतु, बार-बार अनुस्मारक भेजे जाने के बावजूद 1066 कॉलेजों ने आवश्यक सूचनाएँ उपलब्ध नहीं कराई, जिसके चलते एनसीटीई की नॉर्दर्न रीजनल कमेटी (NRC) ने उनकी मान्यता समाप्त करने का निर्णय लिया।
खराब गुणवत्ता के खिलाफ कड़ा रुख
पिछले कुछ वर्षों में शिक्षक प्रशिक्षण संस्थानों की mushrooming यानी बिना मानकों के बड़ी संख्या में खुलने की प्रवृत्ति ने शिक्षा की गुणवत्ता को नुकसान पहुंचाया है। इन कॉलेजों पर आरोप है कि ये केवल डिग्री बाँटने के केंद्र बनकर रह गए हैं, जिससे बेरोजगार शिक्षकों की फौज तो खड़ी हो रही है, पर गुणवत्ता शून्य है।
NCTE के सूत्रों के मुताबिक यह निर्णय अचानक नहीं हुआ है। केंद्र सरकार के निर्देश पर परिषद ने देशभर में संचालित सभी शिक्षक प्रशिक्षण संस्थानों की गुणवत्ता की जाँच करने की प्रक्रिया प्रारंभ की थी। इसके तहत उत्तरी भारत के राज्यों, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर में संचालित करीब 3000 महाविद्यालयों को सूचीबद्ध किया गया, जिन पर मान्यता समाप्ति की तलवार लटक रही है।
सियासत और शिक्षा का गठजोड़
यह भी सामने आ रहा है कि इन कॉलेजों में से कई का संचालन प्रभावशाली राजनेताओं, पूर्व मंत्रियों, विधायकों, नौकरशाहों या उनके परिजनों द्वारा किया जा रहा है। ऐसे में मान्यता समाप्त करने के निर्णय पर दबाव डालने की भी कोशिशें हो रही हैं। लेकिन परिषद के उच्च अधिकारी और मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि केंद्र सरकार अब इस मामले में कोई नरमी नहीं बरतने वाली है। प्रधानमंत्री कार्यालय तक इस मुद्दे की रिपोर्ट पहुँच चुकी है और स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि कोई भी अधोमानक संस्थान संचालित नहीं होना चाहिए। छात्रों और अभिभावकों की चिंता बढ़ी
इस निर्णय से सबसे अधिक प्रभावित वे छात्र हैं, जिन्होंने इन कॉलेजों में दाखिला ले रखा है या प्रवेश की प्रक्रिया में थे। मान्यता समाप्त होने से इनका भविष्य अधर में लटक गया है। हालांकि, परिषद द्वारा जल्द ही विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किए जाने की संभावना है, जिसमें वैकल्पिक व्यवस्था या अन्य मान्यता प्राप्त संस्थानों में समायोजन की बात हो सकती है।
शिक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि यह फैसला कड़े लेकिन जरूरी सुधारों की दिशा में एक बड़ा कदम है। यदि गुणवत्ता आधारित शिक्षक तैयार नहीं होंगे तो देश की शिक्षा व्यवस्था पर उसका दूरगामी नकारात्मक असर पड़ेगा। उन्होंने सरकार से मांग की है कि प्रभावित छात्रों के लिए तत्काल समाधान पेश किया जाए और भविष्य में मान्यता की प्रक्रिया को पारदर्शी और तकनीकी आधारों पर आधारित किया जाए।
पिछली कार्यवाही भी रही सख्त
गौरतलब है कि NCTE ने पिछले वर्षों में भी कड़ी कार्रवाई करते हुए देशभर के 1300 से अधिक प्रशिक्षण संस्थानों की मान्यता समाप्त की थी, जिनमें से अकेले उत्तर प्रदेश के 1000 से अधिक कॉलेज थे। बावजूद इसके, बड़ी संख्या में कॉलेजों द्वारा नियमों की अनदेखी जारी रही। अब केंद्र सरकार और एनसीटीई ने स्पष्ट कर दिया है कि बिना बुनियादी सुविधाओं और योग्य फैकल्टी के कोई भी संस्थान शिक्षक प्रशिक्षण का कार्य नहीं कर सकेगा।
उच्च स्तर पर लिया गया निर्णय
शिक्षा मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि यह फैसला केवल एनसीटीई स्तर पर नहीं, बल्कि केंद्रीय नेतृत्व के निर्देश पर लिया गया है। यह नीति अब बन चुकी है कि गुणवत्ता से समझौता किसी भी स्तर पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। NCTE चेयरमैन के कार्यालय ने भी इन आदेशों की पुष्टि की है। अब इस पूरी प्रक्रिया का अगला चरण है, पारदर्शी काउंसलिंग और नए शिक्षण सत्र से पहले छात्रों के समायोजन की प्रक्रिया। साथ ही, जिन कॉलेजों की मान्यता समाप्त की गई है, वे यदि सभी मानकों को पूरा करते हैं और उचित समय सीमा में पीएआर जमा करते हैं, तो पुनः मान्यता के लिए आवेदन कर सकते हैं, लेकिन इसके लिए सख्त निरीक्षण और सत्यापन की प्रक्रिया से गुजरना होगा।
वरिष्ठ प्रवक्ता मनोज शर्मा ने कहा कि उत्तर प्रदेश सहित उत्तर भारत के हजारों शिक्षक प्रशिक्षण संस्थानों पर कार्रवाई यह दर्शाती है कि अब शिक्षक निर्माण के क्षेत्र में अनियमितताओं को सहन नहीं किया जाएगा। शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के इस संकल्प के चलते, जहाँ एक ओर अधोमानक कॉलेज बंद होंगे, वहीं योग्य छात्रों को बेहतर प्रशिक्षण मिल सकेगा। सरकार और NCTE को चाहिए कि इस बदलाव की प्रक्रिया को छात्रहित में सुनियोजित ढंग से पूरा करें, जिससे भविष्य के शिक्षक न केवल डिग्रीधारी, बल्कि वास्तविक रूप से शिक्षण योग्य हों।