अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए कांशीराम सत्ता को एक साधन मानते थे। 14 अप्रैल 1984 को एक बड़े कार्यक्रम के तहत बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) की स्थापना की गई। इसका उद्देश्य था सामाजिक परिवर्तन और आर्थिक मुक्ति के आंदोलन के लिए बहुजन समाज को देश का शासक बनाना। उन्होंने बाबा साहेब अंबेडकर के 1932 में कहे गए शब्दों को आगे बढ़ाने का कार्य किया कि आपको इस देश का शासक वर्ग बनना है।
कांशीराम के प्रभावशाली नारे
राजनीति में नारों का विशेष महत्व होता है, और कांशीराम इस तथ्य को भली-भांति जानते थे। उनके द्वारा दिए गए कई नारे भारतीय राजनीति में अमिट छाप छोड़ गए। जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारीयह लोकतंत्र के मूल सिद्धांत को दर्शाता है और समानता की वकालत करता है।
राज हमारा, वोट हमारा, राज तुम्हारा नहीं चलेगा
यह नारा राजनीतिक व्यवस्था की असमानता को उजागर करता है। तिलक, तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार
बसपा संस्थापक ने गरीब खासकर पिछड़ों और दलितों के उत्थान के लिए डीएस-फोर संगठन से शुरुआत की। इसके बाद अपने नारे को और तल्ख बनाते हुए नारा दिया-‘तिलक, तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार।
यह नारा राजनीतिक व्यवस्था की असमानता को उजागर करता है। तिलक, तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार
बसपा संस्थापक ने गरीब खासकर पिछड़ों और दलितों के उत्थान के लिए डीएस-फोर संगठन से शुरुआत की। इसके बाद अपने नारे को और तल्ख बनाते हुए नारा दिया-‘तिलक, तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार।
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‘सत्ता की चाबी हासिल करना जरूरी, और…’, कांशीराम जयंती पर श्रद्धांजलि देने के बाद बोलीं मायावती
मिले मुलायम कांशीराम, हवा हो गए जय श्रीरामएक दौर वह था जब राम नाम की बयार पूरे देश में चल पड़ी थी। कमल सब पर भारी पड़ने लगा। इससे निपटने के लिए आज के दो दिग्गज दुश्मन तब दोस्त बन गए। भाजपा से निपटने के लिए सपा और बसपा ने हाथ मिलाया। तब दोनों पार्टियों का एक मिला जुला नारा चला था, जो काफी फेमस हुआ।
चढ़ गुंडों की छाती पर, मुहर लगेगी हाथी पर
हालांकि सपा से यह दोस्ती ज्यादा दिनों तक नहीं चली, 2007 में जब विधानसभा चुनाव हुए तो मायावती ने दलितों और गरीबों को इकठ्ठा करने के लिए एक नारा और गढ़ा। जिसमे सपा के खिलाफ कहा गया- ‘चढ़ गुंडों की छाती पर, मुहर लगेगी हाथी पर’
हालांकि सपा से यह दोस्ती ज्यादा दिनों तक नहीं चली, 2007 में जब विधानसभा चुनाव हुए तो मायावती ने दलितों और गरीबों को इकठ्ठा करने के लिए एक नारा और गढ़ा। जिसमे सपा के खिलाफ कहा गया- ‘चढ़ गुंडों की छाती पर, मुहर लगेगी हाथी पर’
मायावती यदि कांशीराम जैसे प्रभावी नारों और जनसंपर्क अभियानों का इस्तेमाल करती हैं, तो यह जरूर बहुजन समाज को एकजुट करने में मददगार हो सकता है। लेकिन आज की राजनीति में सिर्फ नारों के सहारे सत्ता हासिल करना मुश्किल है। अब चुनावी समीकरण, सोशल मीडिया, जातीय गठजोड़, विकास का एजेंडा, और विपक्षी रणनीतियों का भी बड़ा प्रभाव पड़ता है।