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महासमुंद

Holi 2025: 100 सालों से होली पर यहां होती है कुहकी नृत्य, जानिए लोगों ने क्या कहा?

Holi 2025: बिना किसी वाद्य यंत्र के होली पर महासमुंद के बिरकोनी गांव में बुजुर्ग कुहकी नृत्य करते हैं।

महासमुंदMar 12, 2025 / 12:07 pm

Khyati Parihar

Holi 2025: 100 सालों से होली पर यहां होती है कुहकी नृत्य, जानिए लोगों ने क्या कहा?
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Holi 2025: बिना किसी वाद्य यंत्र के होली पर महासमुंद के बिरकोनी गांव में बुजुर्ग कुहकी नृत्य करते हैं। ऐसी मान्यता है कि होली इस नृत्य के बिना अधूरी मानी जाती है।
Holi 2025: 100 सालों से होली पर यहां होती है कुहकी नृत्य, जानिए लोगों ने क्या कहा?
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Holi 2025: गले की आवाज से होने वाले इस नृत्य में 8 से 10 लोगों का ग्रुप होता है और एक व्यक्ति गले से एक अलग तरह की आवाज निकालता है। इस आवाज से नृत्य की लय व डंडे की चाल बदलती है। आवाज से इशारा मिलने पर नर्तक नृत्य का तरीका बदलने के साथ आगे-पीछे घूमकर डंडे से डंडे पर चोट करते हैं।
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Holi 2025: गांव के सियानों ने विलुप्ति के कगार पर पहुंचे पारंपरिक कुहकी डंडा नृत्य को पांच पीढ़ियों से संभाला है। कुहकी नृत्य करने वाले अधिकतर 60 साल से ऊपर के हो चले हैं।
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Holi 2025: वे नई पीढ़ी को यह कला सिखाना और इस नृत्य परंपरा को आगे बढ़ाना चाहते हैं। गांव के बुधारू निषाद, कहते हैं कि इस नृत्य में गले से निकाली जानी वाली विशिष्ट आवाज से ही नृत्य की लय, गति और डंडे की चाल बदलती है।
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Holi 2025: गांव में यह नृत्य कला एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को मिल रही है। शंभू साहू, बताते हैं कि बीते 100 सालों से हमारे पूवर्ज इस नृत्य को करते आ रहे हैं अब हमने इसका जिम्मा संभाला है, लेकिन नई पीढ़ी की इसमें कोई रुचि नहीं दिखती।
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Holi 2025: कुहकी डंडा नृत्य छत्तीसगढ़ के पशुपालक कृषकों का पारंपरिक नृत्य है। पहले कृषि और पशुपालन करने वाले ग्रामीण प्राय: हाथों में डंडे लेकर चलते थे। फागुनी उमंग में डंडों से ही संगीत की तरंग निकाल लेते थे। इस नृत्य का किसी जाति विशेष से कोई संबंध नहीं है। हां यह नृत्य केवल पुरुष ही करते हैं। इस नृत्य में तीव्र डंडा चालन जोखिम भरा होता है।
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Holi 2025: कुहकी नृत्य भी अनेक प्रकार का होता है। पहला छर्रा, तीन टेहरी, गोल छर्रा, समधीन भेंट और घुस। अभी बिरकोनी के सियान छर्रा और तीन टेहरी का प्रदर्शन करते हैं।
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Holi 2025: होली के अवसर पर इसका आनंद लेने हजारों की भीड़ लगी होती है। गांव के बुधारू निषाद, शंभू साहू, भीम साहू, हेमलाल साहू, लक्ष्मण साहू, पुनीतराम साहू, दुजेंद्र साहू, बुधारू चक्रधारी, सुकालु निषाद, कुमार साहू बताते हैं कि 10 साल के उम्र से ही होली के अवसर पर कुहकी नृत्य करते आ रहे हैं।

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