गीता के श्लोक से समझाया भजन मार्ग
उन्होंने कहा कि “युद्ध” का अर्थ सिर्फ रणभूमि में लड़ना नहीं, बल्कि जीवन में अपने दायित्वों का पूरी ईमानदारी से पालन करना भी है। गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा ‘माम अनुस्मर युद्ध्य च’ यानी युद्ध करो और मेरा स्मरण भी करो। इसी प्रकार जो पद आपको मिला है, उसका उपयोग अगर राष्ट्र सेवा और जनकल्याण की भावना से किया जाए, तो यही भगवत प्राप्ति का मार्ग बन जाता है। प्रेमानंद जी ने भय और प्रलोभन दो खास बातों से बचने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि अगर हम किसी से डरें या लालच में पड़ जाएं तो हमारा धर्म से च्युत होना निश्चित है। लेकिन यदि हम निडर और लोभ रहित होकर अपने कर्म करें, तो न केवल हमारा लोकिक विकास होता है, बल्कि आत्मिक उन्नति भी होती है।
उन्होंने आगे कहा कि समाज सेवा करते हुए भी भगवान का स्मरण संभव है। जो अधिकार हमें मिला है वह भगवान की कृपा है। अगर हम इस जिम्मेदारी को ठीक से निभाते हैं, तो आगे और ऊंचे अवसर मिलेंगे और अंततः वही परम पद भगवान की प्राप्ति भी संभव है। इस अवसर पर डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक ने प्रेमानंद जी महाराज की शिक्षाओं को अपनी सार्वजनिक सेवा में आत्मसात करने की बात कही।