वन विभाग के ताजा आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2021 से मई 2025 तक चंद्रपुर जिले में कुल 173 लोगों की जान वन्यजीव हमलों में गई, जिनमें से 150 मौतें केवल बाघों के कारण हुईं। 2022 सबसे भयावह साल रहा जब बाघ के हमलों में 50 से ज्यादा लोगों की जान गई, जबकि 2025 में अब तक 22 लोगों की मौत हो चुकी है।
चंद्रपुर में बाघों की संख्या 2006 में 34 थी, जो 2021 में बढ़कर 223 हो गई। बाघों की आबादी में वृद्धि एक बड़ी उपलब्धि है, लेकिन स्थानीय निवासियों के लिए यह खतरनाक स्थिति पैदा कर रही है, खासकर उन हजारों ग्रामीणों के लिए जो आजीविका के लिए जंगल पर निर्भर हैं।
तेंदूपत्ता की वजह से कई घटनाएं
मुख्य वन संरक्षक डॉ. जितेंद्र रामगांवकर ने बताया कि मई के महीने में तेंदू पत्ता इकट्ठा करने के लिए लगभग 50000 से 60000 लोग उस जंगल में जाते हैं, जहां 150 से अधिक बाघ हैं। लोग वन विभाग की चेतावनियों को गंभीरता से नहीं लेते। जब हम उन्हें रोकते हैं, तब भी वे दूसरे रास्तों से जंगल में घुस जाते हैं। दरअसल तेंदूपत्ता का उपयोग ‘बीड़ी’ बनाने के लिए किया जाता है और इन पत्तों को इकट्ठा करना इस क्षेत्र में आय का एक प्रमुख स्रोत है। जंगल के अधिकांश गहरे हिस्सों में ये तेंदूपत्ता पाए जाते हैं, जहां हाल के ज़्यादातर बाघ के हमले हुए हैं।
मनुष्यों के साथ-साथ मवेशियों पर भी बाघों के हमले बढ़ गए हैं, जो चिंता का विषय बना हुआ है। वर्ष 2021 से 2025 तक अब तक दस हजार से अधिक मवेशी जंगली जानवरों के हमले में मारे गए हैं। इस अवधि में सरकार ने मुआवज़े के रूप में 122 करोड़ रुपये से अधिक की राशि दी है, जिसमें अकेले 2024-25 में 31.39 करोड़ दिए गए।
कहां हो रही चूक?
डॉ. रामगांवकर ने बताया कि वन विभाग ने पूरे जंगल क्षेत्र को बाघों की गतिविधि के आधार पर हाई, मीडियम और लो सेंसिटिव जोन में बांटा है और इन क्षेत्रों में कैमरा ट्रैप व टीमें तैनात की गई हैं। लेकिन 95% घटनाएं जंगल के भीतर ही होती हैं, बाघ आबादी की तरफ नहीं आ रहे। लोग ही बाघों के क्षेत्र में जा रहे हैं। चंद्रपुर जिला 4,845 वर्ग किलोमीटर में फैले घने जंगलों के लिए जाना जाता है। चंद्रपुर के करीब 200 गांवों में प्राथमिक प्रतिक्रिया टीम (PRT) बनाई गई है, जिसमें स्थानीय ग्रामीण शामिल हैं। हर टीम में 5 सदस्य हैं जिन्हें सुरक्षा किट और प्रशिक्षण दिया गया है। वन विभाग की ओर से उन्हें बाघ के मूवमेंट की जानकारी दी जाती है, जो खतरा होने पर ग्रामीणों को सतर्क करते हैं।
इसके अलावा 20 गांवों में AI आधारित अर्ली वॉर्निंग सिस्टम भी लगाया गया है, जो तब काम करता है जब जानवर जंगल से गांव की ओर बढ़ता है। लेकिन अगर लोग खुद ही गहरे जंगल में चले जाते हैं, तो कोई भी सिस्टम उनकी मदद नहीं कर सकता।