नागौर. जिले के की राजोद ग्राम पंचायत के बिचपुड़ी गांव के गवाड़ में करीब ढाई दशक से सूखे पड़ेजीएलआर की कागजों में सफाई दिखाकर जिम्मेदार सरकार को आर्थिक नुकसान पहुंचाने में लगे हैं। जीएलआर के नल तक कबाड़ में बिक चुके हैं। जीएलआर जर्जर पड़ा है। उसकी भी नियमित सफाई का भुगतान उठाकर राजकोष को खोखला किया जा रहा है। कागजी सफाई के साथ इन पर सफाई की दिनांक कर अंकित की जा रही है।
ताकि किसी को नजर नहीं आए कथित सफाईकर्ता सफाई की तारीख ऐसे स्थान पर लिखते हैं कि किसी को नजर नहीं आए और उनका काम भी बन जाए। सफाई की तारीख जीएलआर के पीछे छिपाकर लिखी गई हैं। जबकि इसके पाइप तक नहीं बचे हैं।
यहां बदल गया गांव बिचपुड़ी गांव के अंगोर में गंवाई कुएं के पास बना जीएलआर भी करीब डेढ़ दशक से सूखा पड़ा है। यह बिचपुड़ी गांव का है, लेकिन सफाईकर्ता ने इसे चकढाणी का बता सफाई तारीख के साथ गांव का नाम चकढाणी अंकित कर दिया। वह भी आक के पौधे की टहनियों के बीच, ताकि किसी को दिखे नहीं।
एक से दो हजार मिलता है मेहनताना जीएलआर की सफाई के लिए जलदाय विभाग की ओर से वार्षिक टेंडर होता है। जिसमें जीएलआर की क्षमता अनुसार प्रत्येक जीएलआर की सफाई का मेहनताना दिया जाता है। एक से दो हजार रुपए प्रति जीएलआर प्रति वर्ष भुगतान होता है। ऐसे कई जर्जर जीएलआर कागजी सफाई के साथ ठेकेदारों की जेब भरने के साधन बन रहे हैं।
इनका कहना है प्रति जीएलआर क्षमता के अनुसार सफाई की राशि निर्धारित होती है। सूखे व जर्जर जीएलआर पर सफाई तारीख लिखी है तो गलत है। प्रकाश, कनिष्ठ अभियंता, जलदाय विभाग, डेगाना ।