AK-203 की खासियतें
मूल और डिजाइन: AK-203, विश्व प्रसिद्ध कलाश्निकोव सीरीज का आधुनिक संस्करण है, जिसे रूस के कलाश्निकोव कंसर्न ने विकसित किया है। यह 7.62×39mm कैलिबर की गोलियों का उपयोग करती है, जो INSAS की 5.56mm गोलियों की तुलना में अधिक मारक क्षमता रखती है। वजन और लंबाई: इसका वजन केवल 3.8 किलोग्राम है, और लंबाई स्टॉक फोल्ड होने पर 690 मिमी और खुलने पर 930 मिमी है, जो इसे हल्का और आसानी से संभालने योग्य है। रेंज और फायरिंग क्षमता: इसकी रेंज 800 मीटर है, और यह प्रति मिनट 700 राउंड तक फायर कर सकती है। यह सेमी-ऑटोमैटिक और फुल-ऑटोमैटिक मोड में काम करती है, जो इसे आतंकवाद विरोधी अभियानों और उच्च ऊंचाई वाले युद्धों के लिए आदर्श बनाती है।
विश्वसनीयता: AK-203 अपनी मजबूती, कम रखरखाव और हर मौसम में काम करने की क्षमता के लिए जानी जाती है। यह जाम नहीं होती।
स्वदेशीकरण को बढ़ावा
IRRPL ने अब तक 48,000 AK-203 राइफलें भारतीय सेना को सौंपी हैं, जिनमें 50% स्वदेशी सामग्री का उपयोग किया गया है। दिसंबर 2025 तक 100% स्वदेशी AK-203 का उत्पादन शुरू होने की उम्मीद है। 2025 में 70,000 और 2026 में 1 लाख राइफलें सेना को मिलेंगी। 2026 से अमेठी की फैक्ट्री हर महीने 12,000 राइफलें बनाने की क्षमता हासिल कर लेगी, जिससे 2030 तक 6.01 लाख राइफलें बनाने का लक्ष्य पूरा हो जाएगा। कानपुर की स्मॉल आर्म्स फैक्ट्री (SAF) ने GOST मानक के अनुरूप एक विशेष धातु विकसित की है, जो रूसी हथियारों की गुणवत्ता को बनाए रखने में मदद करेगी। यह स्वदेशीकरण में एक बड़ी उपलब्धि है।
‘शेर’ का महत्व
AK-203 राइफल को ‘शेर’ नाम इसलिए दिया गया क्योंकि यह भारतीय सेना की मारक क्षमता को कई गुना बढ़ाने वाली अत्याधुनिक और शक्तिशाली राइफल है। इसकी ताकत, विश्वसनीयता और युद्ध में प्रभावशीलता को देखते हुए इसे ‘शेर’ की उपमा दी गई, जो शक्ति, साहस और दबदबे का प्रतीक है। इस राइफल ने ऑपरेशन सिंदूर जैसे महत्वपूर्ण सैन्य अभियानों में अपनी क्षमता साबित की है, जिससे इसका यह नाम और भी उपयुक्त माना गया। इसके अलावा, यह भारत में ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ पहल के तहत निर्मित होने वाली पहली 100% स्वदेशी AK-203 राइफल होगी, जो राष्ट्रीय गौरव का भी प्रतीक है।