scriptकिस ओर करवट लेगी बिहार की दलित सियासत, मांझी-चिराग में खींचतान, राजद-कांग्रेस का क्या है प्लान? | Bihar: 19 percent votes, NDA Chirag and Manjhi's paths separate, Congress's Dalit politics a problem for RJD! | Patrika News
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किस ओर करवट लेगी बिहार की दलित सियासत, मांझी-चिराग में खींचतान, राजद-कांग्रेस का क्या है प्लान?

बिहार में 19 फीसदी दलित वोट है। 38 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। सभी पार्टियों की नजर इसी वोट बैंक पर है। अब तक बिहार में तीन दलित नेता सीएम बन हैं।

पटनाJun 14, 2025 / 03:19 pm

Pushpankar Piyush

Dalit politics Bihar

Dalit politics Bihar

बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Election) का बिगुल फूंका जा चुका है। पार्टियां अपनी-अपनी बिसात बिछाने में जुट गई है। दलित वोट बैंक (Dalit Vote Bank) पर सभी की नजरें टिकी हुई हैं। NDA और इंडिया गठबंधन लगातार बिहार की 19 फीसदी वोट बैंक को साधने में जुटी हुई हैं।

NDA में असहयोग की राह

NDA में दलित सियासत (Dalit politics) को लेकर केंद्रीय मंत्री व हिंदुस्तान आवाम मोर्चा (सेक्युलर) के संरक्षक जीतन राम मांझी (Jitan Ram Manjhi) और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) प्रमुख चिराग पासवान (Chirag Paswan) असहयोग की राह पकड़े हुए हैं। आरक्षण की सुविधा से क्रीमी लेयर को वंचित रखने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर दोनों ने अलग-अलग राह अपनाई।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के साथ दिखे मांझी

केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के फैसले के साथ दिखे। उन्होंने इसे दलित हित में फैसला बताया। कहा कि यह फैसला दस साल पहले आ जाना चाहिए था। आज आरक्षण पर आए फैसले के खिलाफ वही लोग हैं, जिन्होंने इसका 76 साल तक लाभ लिया। उन्होंने कहा कि पिछले 76 साल से आरक्षण का फायदा चार जातियां ही क्यों उठा रही है? आज तक भुइयां, मुसहर, मेहतर जैसी जातियों के कितने IAS-IPS बने हैं। इन जातियों के कितने-कितने चीफ इंजीनियर हैं। इन जातियों की साक्षरता दर आज भी बहुत कम है।

आरक्षण की सुविधा में बंटावार न हो: चिराग

LJP(R) प्रमुख चिराग पासवान ने कहा कि वह आरक्षण की सुविधा में कोई बंटवारा नहीं चाहते हैं। उन्होंने कहा कि क्रीमी लेयर वालों को आरक्षण की सुविधा से वंचित नहीं किया जाना चाहिए। चिराग ने कहा कि वे स्वेच्छा से आरक्षण छोड़ें, इसके लिए वातावरण तैयार किया जाना चाहिए।

चिराग की रैली पर कसा तंज

बीते दिनों आरा में हुई चिराग पासवान की रैली पर इशारों-इशारों में जीतन राम मांझी ने तंज कसा है। मांझी ने कहा कि जो नेता वास्तव में मजबूत होते हैं। उन्हें ज्यादा बोलने की जरूरत नहीं पड़ती है। कमजोर लोग ही अक्सर दिखावा करते हैं और ज्यादा बोलते हैं। मांझी ने कहा कि हमारी पार्टी NDA के साथ मजबूती से खड़ी है।

कांग्रेस ने दलित राजेश राम को बनाया प्रदेश अध्यक्ष

लोकसभा चुनाव के बाद से राहुल गांधी (Rahul Gandhi) लगातार सामाजिक न्याय और जातीय सर्वे की बात करते नजर आ रहे हैं। वह दलितों और पिछड़ों की सियासत के सहारे बिहार में कांग्रेस की वापसी का रास्ता तलाश रहे हैं। बीते दिनों बिहार दौरे पर उन्होंने दलितों और पिछड़ों संग संवाद भी किया था। पटना में समाज सुधारक महात्मा ज्योतिराव फुले और उनकी पत्नी सावित्रीबाई फुले के जीवन पर आधारित फिल्म फुले भी देखने पहुंचे थे। जिसको लेकर काफी हंगामा भी बरपा था।
इससे पहले भूमिहार जाति से आने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री अखिलेश प्रसाद सिंह को पहले बिहार कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाया गया। फिर दलित समुदाय से आने वाले दो बार के विधायक राजेश कुमार को बिहार कांग्रेस की बागडोर सौंप दी। बिहार में कांग्रेस के पास दलित सियासत की मजबूत विरासत रही है।
बाबू जगजीवन राम एक समय कांग्रेस के दलित चेहरा हुआ करते थे। राजेश राम के पिता पूर्व मंत्री दिलकेश्वर राम भी बिहार में बड़ा दलित चेहरा रहे हैं। राजेश राम ने कुटुंबा सीट से 2015 में जीतन राम मांझी के बेटे व हम (सेक्युलर) प्रमुख संतोष मांझी को चुनाव में शिकस्त दी थी। 2020 में भी उन्होंने हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के उम्मीदवार को हराया था। राजेश राम बिहार विधानसभा में कांग्रेस के उप मुख्य सचेतक भी हैं।

लालू का जन्मदिन, राजद ने दलितों को खिलाया केक

राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव (Lalu Yadav) ने बीते बुधवार को अपना 78वां जन्मदिन मनाया। पार्टी कार्यकर्ताओं ने इस मौके पर दलित बस्ती में भोज का आयोजन किया। दलित बच्चों के बीच किताब, कॉपी और कलम बांटे। दलित बस्तियों में केक काटा। दरअसल, यह सारी कवायद बिहार में 19 फीसदी दलित वोट बैंक पर है। राजद इस बार सत्ता हासिल करने के लिए OBC, अल्पसंख्यक के साथ-साथ दलितों को अपने पाले में करने के लिए पूरी जोर आजमाइश कर रही है।

38 आरक्षित सीटों पर कब्जे की कोशिश

बिहार विधानसभा में कुल 243 सीटें हैं। अनुसूचित जाति के लिए 38 सीटें आरक्षित हैं। दलित सत्ता बनाने और बिगाड़ने की कुव्वत रखते हैं। साल 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में 38 में से 21 सीटों पर NDA ने जीत हासिल की थी, 17 सीटों पर महागठबंधन को जीत मिली थी।

जदयू की दलित-महादलित सियासत

बिहार में पहले दलित समुदाय में 22 जातियां आती थी, लेकिन 2005 में बिहार की सत्ता पर नीतीश कुमार काबिज हुए। उन्होंने वोट बैंक साधने के लिए और राम विलास पासवान की दलित पॉलिटिक्स की काट निकालने के लिए दलितों को दो जातियों में बांट दिया। 22 में से 21 जातियों को उन्होंने महादलित में शामिल कर दिया, जबकि पासवान जाति को उन्होंने दलित की कैटेगरी में रखा। नीतीश कुमार की सोशल इंजीनियरिंग पिछले 20 सालों में गैर यादव ओबीसी और महादलित के ईर्द गिर्द घुमती रही। वक्त-वक्त पर उन्हें सवर्णों का साथ भी मिलता रहा, लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में नीतीश को तगड़ा झटका लगा। जदयू ने SC कैटेगरी की केवल 8 सीटों पर जीत हासिल की। जदयू एक बार फिर दलित सियासत को साधने में जुटी हुई है।

ढाक के तीन पात साबित हुए तीनों दलित मुख्यमंत्री

बिहार में हमेशा दलितों को वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया गया है। तीन दलित नेता अब तक बिहार के सीएम बने हैं, लेकिन तीनों ढाक के तीन पात साबित हुए। कांग्रेस नेता भोला पासवान शास्त्री बिहार के पहले दलित सीएम बने। वह तीन बार बिहार के सीएम बने। वह केंद्र में मंत्री भी रहे। भोला के बाद राम सुंदर दास बिहार के दलित सीएम बने। दलित समाज से आने वाले जीतन राम मांझी भी राज्य के सीएम बने। तीनों ही नेता कुछ खास प्रभाव नहीं छोड़ पाए।

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