उन्होंने स्पष्ट किया कि न्यायपालिका को हर तरह के बाहरी दबाव से पूरी तरह मुक्त रहना चाहिए और रिटायरमेंट के बाद जजों द्वारा राजनीतिक पद लेना नैतिकता के खिलाफ है। यह कदम जनता के बीच न्यायपालिका के प्रति विश्वास को कमजोर करता है, क्योंकि इससे धारणा बनती है कि फैसले भविष्य में सरकारी नियुक्ति या राजनीतिक लाभ के लिए लिए गए हैं।
CJI बी. आर. गवई ने समझाया कि संविधानिक अदालतों में न्यायाधीशों की नियुक्ति में कॉलेजियम प्रणाली कैसे अस्तित्व में आई। उन्होंने माना कि इस प्रणाली की आलोचना की जा सकती है, लेकिन स्पष्ट किया कि “न्यायपालिका की स्वतंत्रता से समझौता किसी भी हाल में नहीं किया जा सकता।” उन्होंने ज़ोर देकर कहा, “न्यायाधीशों को हर तरह के बाहरी दबाव से पूरी तरह मुक्त रहना चाहिए।”
CJI ने कहा कि रिटायरमेंट के बाद यदि कोई न्यायाधीश तुरंत ही सरकार में कोई पद लेता है या चुनाव लड़ने के लिए अदालत से इस्तीफा देता है, तो यह महत्वपूर्ण नैतिक चिंताओं को जन्म देता है और सार्वजनिक जांच को आमंत्रित करता है। उन्होंने कहा, “जब कोई न्यायाधीश राजनीतिक पद के लिए चुनाव लड़ता है, तो इससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर सवाल उठ सकते हैं। लोग इसे हितों के टकराव या सरकार के पक्ष में झुकाव दिखाने की कोशिश समझ सकते हैं।”
उन्होंने कहा, ‘रिटायरमेंट के बाद ऐसे पद लेने से न्यायपालिका पर जनता का भरोसा कम होता है, क्योंकि इससे धारणा बनती है कि न्यायपालिका के फैसले भविष्य की सरकारी नियुक्तियों या राजनीतिक भागीदारी की संभावना के चलते लिए गए हैं।’
बेंगलुरु भगदड़ में 11 RCB फैंस की मौत, डिप्टी सीएम ने कहा- We Are Sorry, CM ने किया मुआवजे का ऐलान CJI गवई ने कहा, “मैंने और मेरे कई साथी न्यायाधीशों ने सार्वजनिक रूप से कसम खाई है कि हम रिटायरमेंट के बाद किसी भी सरकारी पद या राजनीतिक भूमिका को स्वीकार नहीं करेंगे। यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता और भरोसे को बनाए रखने की एक कोशिश है।” उन्होंने स्वीकार किया कि न्यायपालिका में भ्रष्टाचार के कुछ मामले सामने आए हैं, जिससे जनता का विश्वास प्रभावित हुआ है।
उन्होंने कहा, “इस विश्वास को पुनः स्थापित करने का रास्ता शीघ्र, निर्णायक और पारदर्शी कार्रवाई में है। भारत में ऐसे मामले सामने आने पर सुप्रीम कोर्ट ने हमेशा तत्काल कदम उठाए हैं।” CJI ने सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की संपत्तियों को सार्वजनिक करने के कदम की भी प्रशंसा की। इसे उन्होंने पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने वाला महत्वपूर्ण कदम बताया, जो नैतिक नेतृत्व का उदाहरण प्रस्तुत करता है और न्यायपालिका की विश्वसनीयता मजबूत करता है।