चीन दलाई लामा को मानता है अलगाववादी
नोबेल पुरस्कार विजेता तेनजिन ग्यात्सो को दुनिया के सबसे प्रभावशाली धार्मिक नेताओं में से एक माना जाता है। उनके अनुयायी सिर्फ बौद्ध धर्म तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि अन्य धर्मों के लोग भी उन्हें लोग फोलो करते है। हालांकि पड़ोसी देश उन्हें एक धार्मिक नेता की बजाय एक अलगाववादी के तौर पर देखता है। चीन का आरोप है कि वर्तमान दलाई लामा ने बौद्ध धर्म को अपने नियंत्रण में लाने की कोशिश की है।
1959 में दलाई लामा ने चीन का विरोध किया
साल 1959 में तिब्बतियों ने चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी का विरोध किया था लेकिन असफल रहने के चलते 14वें दलाई लामा और लाखों तिब्बती अपना घर छोड़कर भारत आ गए और यहीं शरण ली। इसके बाद से ही दलाई लामा तिब्बतियों के लिए कोई शांतिपूर्ण बीच का रास्ता निकाले जाने की वकालत कर रहे है, जो तिब्बतियों को अपने फैसले लेने का अधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता दे सके।
दीर्घायु प्रार्थना समारोह में 130 साल जीने की बात कही
जन्मदिन से पहले आयोजित पूर्व दीर्घायु प्रार्थना समारोह के दौरान दलाई लामा ने कहा कि, अवलोकितेश्वर का आशीर्वाद उनके साथ है और उन्हें लगता है कि वह अभी 30-40 साल और जीवित रहेंगे। दलाई लामा ने कहा4, मुझे बचपन से ही लगता था कि अवलोकितेश्वर से मेरा गहरा नाता है। मैं अब तक बुद्ध धर्म और तिब्बत के लोगों की अच्छी तरह से सेवा कर पाया हूं और मुझे उम्मीद है कि मैं 130 साल से ज़्यादा जीऊंगा। साथ ही उन्होंने संस्था के भविष्य के बारे में लोगों की चिंताओं को यह कह कर दूर किया कि, वह अपनी मृत्यु के बाद धर्म के नेता के रूप में पुनर्जन्म लेंगे।
चीन पर भी साधा निशाना
चीन के विदेश मंत्रालय ने हाल ही बयान दिया था, कि अगले दलाई लामा का चुनाव बीजिंग में मौजूद सरकार द्वारा किया जाना चाहिए। इस बात को लेकर चीन पर निशाना साधते हुए दलाई लामा ने कहा कि, उनके गैर-लाभकारी संस्था गादेन फोड्रांग ट्रस्ट को ही उनकी मृत्यु के बाद उनके उत्तराधिकारी को मान्यता देने का एकमात्र अधिकार होगा।