भाषा को लेकर विवाद
यह बयान ऐसे समय में आया है, जब शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) के नेता राज ठाकरे हिंदी के विरोध में एकजुट हो गए हैं। दोनों नेताओं ने मराठी अस्मिता के नाम पर 5 जुलाई 2025 को मुंबई में एक संयुक्त रैली आयोजित की, जिसे ‘मराठी विजय दिवस’ के रूप में मनाया गया। यह रैली पहले हिंदी को स्कूलों में तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य करने के सरकारी फैसले के खिलाफ थी, लेकिन सरकार द्वारा इस नीति को वापस लेने के बाद इसे जीत के जश्न में बदल दिया गया।
विवाद की शुरुआत
महाराष्ट्र में यह विवाद तब शुरू हुआ, जब राज्य सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत पहली से पांचवीं कक्षा में मराठी और अंग्रेजी के साथ हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में पढ़ाने का आदेश जारी किया। इस फैसले का राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे ने कड़ा विरोध किया। राज ठाकरे ने तो इसे “हिंदी थोपने” की कोशिश करार देते हुए कहा कि “महाराष्ट्र में मराठी ही एकमात्र एजेंडा है।” उनके कार्यकर्ताओं ने मुंबई, ठाणे और नासिक जैसे शहरों में हिंदी पाठ्यपुस्तकों को फाड़ने और जलाने की घटनाओं को अंजाम दिया।
त्रिभाषा नीति को रद्द
विरोध के बाद महाराष्ट्र सरकार ने त्रिभाषा नीति को रद्द कर दिया और इसकी समीक्षा के लिए एक समिति गठन की। इस फैसले को ठाकरे बंधुओं ने अपनी जीत बताया और मुंबई में विशाल रैली निकाली। इस रैली में उद्धव और राज ने मराठी अस्मिता की रक्षा का संकल्प दोहराया। हालांकि, शिवसेना (यूबीटी) के प्रवक्ता संजय राउत ने स्पष्ट किया कि उनका विरोध हिंदी के खिलाफ नहीं, बल्कि प्राथमिक स्कूलों में इसे अनिवार्य करने के फैसले के खिलाफ था।
बीजेपी नेताओं का पलटवार
निशिकांत दुबे के अलावा, बीजेपी के अन्य नेताओं ने भी इस मुद्दे पर ठाकरे बंधुओं को चुनौती दी है। महाराष्ट्र के मंत्री नितेश राणे ने इस विवाद में हिंदुत्व का मुद्दा जोड़ते हुए कहा, “मराठी के नाम पर हिंदुओं की पिटाई क्यों हो रही है? अगर हिम्मत है तो मुस्लिम बहुल इलाकों जैसे मोहम्मद अली रोड या भिंडी बाजार में जाकर मराठी बुलवाकर दिखाएं।” राणे ने ठाकरे बंधुओं पर हिंदू समाज को बांटने का भी आरोप लगाया।
निरहुआ ने भी दी चुनौती
इसके अलावा, बीजेपी सांसद और भोजपुरी अभिनेता दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’ ने भी राज और उद्धव ठाकरे को खुली चुनौती दी। उन्होंने कहा, “मैं मराठी नहीं बोलता, जो हिम्मत है, मुझे महाराष्ट्र से निकालकर दिखाए।” निरहुआ ने इसे “गंदी राजनीति” करार देते हुए एकता और सद्भाव की अपील की। बीजेपी नेता आशीष शेलार ने भी एमएनएस कार्यकर्ताओं की हिंसा की तुलना जम्मू-कश्मीर के पाहलगाम आतंकी हमले से की, जिससे विवाद और भड़क गया।
हिंसा की घटनाएं
इस विवाद के बीच, एमएनएस और शिवसेना (यूबीटी) के कार्यकर्ताओं पर हिंदी या गैर-मराठी भाषी दुकानदारों के साथ मारपीट और बदसलूकी के आरोप लगे हैं। मुंबई के मीरा-भायंदर में एक दुकानदार को मराठी न बोलने के कारण पीटा गया, जिसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ। एक अन्य घटना में, शिवसेना (यूबीटी) के पूर्व सांसद राजन विचारे की मौजूदगी में एक गैर-मराठी दुकानदार को पिटवाया गया। इन घटनाओं ने भाषा विवाद को हिंसक रूप दे दिया है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इन घटनाओं पर सख्त रुख अपनाते हुए कहा, “मराठी भाषा का अभिमान रखना गलत नहीं, लेकिन भाषा के नाम पर गुंडागर्दी बर्दाश्त नहीं की जाएगी। ऐसी घटनाओं पर पुलिस कार्रवाई करेगी।”
ठाकरे बंधुओं में एकजुटता
यह विवाद महाराष्ट्र की राजनीति में नए समीकरण बना रहा है। ठाकरे बंधुओं की एकजुटता को आगामी नगर निगम चुनावों से जोड़ा जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मराठी अस्मिता के मुद्दे पर उद्धव और राज की यह जोड़ी बीजेपी के लिए चुनौती बन सकती है। वहीं, बीजेपी इस आंदोलन को “नौटंकी” करार दे रही है और सवाल उठा रही है कि जब उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने हिंदी को क्यों स्वीकार किया था।