चला बटेंगे तो कटेंगे का नारा
महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों नतीजों से साफ है कि महाराष्ट्र में यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के बटेंगे तो कटेंगे नारे ने हिंदू वोटों का तगड़ा ध्रुवीकरण किया। राज्य की 288 में से 268 सीटों पर पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले ज्यादा लोग वोट डालने निकले, जिसका बड़ा फायदा भाजपा को मिला। ग्रामीण इलाकों में 77 फीसदी तो शहरी क्षेत्रों में 55 फीसदी वोट पड़े। इस प्रचंड बहुमत का मतलब साफ है कि गांवों में महायुति को अपेक्षा के काफी अधिक समर्थन मिला। बटेंगे तो कटेंगे के आगे न तो पश्चिमी महाराष्ट्र में शरद पवार का किसानों की हालत का मुद्दा टिका न ही मराठवाड़ा में मराठा आरक्षण का मुद्दा। शिवसेना उद्धव का महाराष्ट्र की अस्मिता और महाराष्ट्र को लूट कर गुजरात ले जाने का मुद्दा मतदाता को प्रभावित नहीं कर पाया। कांग्रेस की ओर से संविधान को खतरे और जिसकी जितनी आबादी उसको उतना हक के लिए जातिगत जनगणना कराने की बात को भी जनता ने अहमियत नहीं दी।
लोकसभा चुनाव के एकदम उलट
इन दोनों मुद्दों के असर के कारण भाजपा ही नहीं उसके दोनों सहयोगियों ने भी लोकसभा चुनाव से एकदम उलट जबर्दस्त प्रदर्शन किया और तीनों महाराष्ट्र में नंबर 1,2,3 की पार्टी बन गए। जबकि, अघाड़ी की गाड़ी 4,5,6 पर लुढ़क गई। कांग्रेस और शिवसेना उद्धव ही नहीं महाराष्ट्र की राजनीति के दिग्गज शरद पवार की एनसीपी तक की धज्जियां हिंदुत्व की आंधी में उड़ गई और अपने जन्म से ही महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ गठबंधन में धीरे-धीरे आगे बढ़ती रही भाजपा ने अपनी दूरगामी रणनीति के चलते आखिरकार देश की आर्थिक राजधानी मुंबई और महाराष्ट्र को फतह कर लिया। भाजपा का प्रयोग सफल, अब जनता की मुहर
गुजरात के पड़ोसी महाराष्ट्र को लेकर भाजपा आलाकमान ने जो प्रयोग पहले शिवसेना और फिर शरद पवार की एनसीपी को तोड़ कर किया, वह पिछले लोकसभा चुनाव में हालांकि उसे भारी पड़ा, लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी और हिंदुत्व के एजेंडे पर अडिग रहते हुए आरएसएस के काडर के सहयोग से इस चुनाव में अपने हर कदम पर जनता की मुहर लगवा ली। महाराष्ट्र में अकेले दम पर भाजपा अब बहुमत के भी और करीब पहुंच गई। गठबंधन के सहयोगियों के साथ दो तिहाई के करीब सीटें जीत ने का दावा तो खुद महायुति के किसी नेता ने नहीं किया था। शिवसेना और एनसीपी में से कौनसी असली और कौनसी नकली है इसका भी फाइनल फैसला हो गया।